भगवान शिव की मूर्ति की होती है यहां पूजा
कोटद्वार। देवभूमि उत्तराखंड के शिव तीथरे में ताड़केर महादेव का नाम भी प्रमुखता से आता है। प्रकृति के सुन्दर मनोरम स्थल पर देवदार के ऊंचे वृक्षों के बीच स्थित इस तरह का कोई दूसरा मन्दिर नही है। यहां भगवान शिव के दर्शन कर भक्त पुण्य प्राप्त करते है। कोटद्वार से लगभग 70 किमी दूर ताडकेर महादेव में इन दिनों भक्तों की खूब आवाजाही है। ताड़केर महादेव मंदिर भगवान शिव के प्रसिद्ध मन्दिरों में आता है। लैंसडाउन से यह मंदिर लगभग 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर को उत्तराखंड के प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। ताड़केर महादेव मंदिर देवदार के पेड़ों बीच एक दिव्य स्थल पर है। जहां शांत वातावरण हर किसी को अपनी ओर खीचता है। यहां जंगली जीव जन्तुओं की उछल कूद भी भक्तों को देखने का मिलती है। मान्यता है कि इस सिद्व स्थल पर ध्यान साधना करने से मनोकामना पूर्ण होती है। तारकेर महादेव मंदिर के बारे में पौराणिक कथा है कि ताड़कासुर नाम का एक राक्षस था, जिसने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। भगवान शिव ताड़कासुर की तपस्या से प्रसन्न हुये और ताड़कासुर से वरदान मांगने को कहा। वरदान के रूप में ताड़कासुर ने अमरता का वरदान चाहा तो भगवान शिव ने अमरता का वरदान नहीं दिया और कहा यह प्र.ति के विरूध है कुछ और वर मांगो। बताते है तब ताड़कासुर ने भगवान शिव के वैराग्य रूप को देखते देखा और कहां की अगर मेरी मृत्यु हो तो सिर्फ आपके पुत्र द्वारा ही हो। ताड़कासुर जानता था, कि भगवान शिव एक वैराग्य जीवन व्यतीत कर रहे है, इसलिए पुत्र का होना असंभव था। तब भगवान शिव ने ताड़कासुर का वरदान दे दिया। वरदारन मिलते ही ताड़कासुर ने अपना आतंक फैला दिया। कई वर्षो के अन्तराल बाद माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह हेतु तप किया और अपने शक्ति रूप को जानने के बाद भगवान शिव से विवाह किया। विवाह के बाद माता पार्वती ने कार्तिक को जन्म दिया जिसने भगवान शिव की सहायता से ताड़कासुर का वध किया। मान्यता है कि ताड़कासुर जब अपनी अन्तिम सांसे ले रहा था तब उसने भगवान शिव से क्षमा मांगी। भगवान शिव ने उसे क्षमा कर कहा कि कलीयुग में लोग तुम्हारें नाम से मेरी शिव की पूजा करेगें। इसलिए इस स्थान का नाम ताड़केर महादेव पड़ा। भगवान शिव की पौराणिक मूर्ति की पूजा की जाती है। ताड़केर महादेव में इन दिनों देश भर के शिव भक्तों का आना जाना लगा हैं। यह शिव मन्दिर जहां शान्ति व सुख का प्रतीक है वहीं यहां पूर्जा अराधना करने से कई पापों का भी छय होता है। इस महादेव के मंदिर में प्रति वर्ष महाशिवरात्रि के त्योहार पर जलाभिषेक करने की बड़ी भारी मान्यता है। ताड़केर महादेव मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि भगवान शिव अभी भी इस स्थान पर है और गहरी नींद में है। यह मन्दिर में जहां प्रकृति के अनुपम उपहार का प्रतीक सा है। वहीं यहां भक्तों द्वारा घंटी दान करने की पम्पंरा अदभुत है। सड़क से मंदिर तक तीन सौ मीटर का रैन सेल्डर बना हुआ है और हर समय यहां ठंड का अहसास होता है।
कोटद्वार। देवभूमि उत्तराखंड के शिव तीथरे में ताड़केर महादेव का नाम भी प्रमुखता से आता है। प्रकृति के सुन्दर मनोरम स्थल पर देवदार के ऊंचे वृक्षों के बीच स्थित इस तरह का कोई दूसरा मन्दिर नही है। यहां भगवान शिव के दर्शन कर भक्त पुण्य प्राप्त करते है। कोटद्वार से लगभग 70 किमी दूर ताडकेर महादेव में इन दिनों भक्तों की खूब आवाजाही है। ताड़केर महादेव मंदिर भगवान शिव के प्रसिद्ध मन्दिरों में आता है। लैंसडाउन से यह मंदिर लगभग 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर को उत्तराखंड के प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। ताड़केर महादेव मंदिर देवदार के पेड़ों बीच एक दिव्य स्थल पर है। जहां शांत वातावरण हर किसी को अपनी ओर खीचता है। यहां जंगली जीव जन्तुओं की उछल कूद भी भक्तों को देखने का मिलती है। मान्यता है कि इस सिद्व स्थल पर ध्यान साधना करने से मनोकामना पूर्ण होती है। तारकेर महादेव मंदिर के बारे में पौराणिक कथा है कि ताड़कासुर नाम का एक राक्षस था, जिसने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। भगवान शिव ताड़कासुर की तपस्या से प्रसन्न हुये और ताड़कासुर से वरदान मांगने को कहा। वरदान के रूप में ताड़कासुर ने अमरता का वरदान चाहा तो भगवान शिव ने अमरता का वरदान नहीं दिया और कहा यह प्र.ति के विरूध है कुछ और वर मांगो। बताते है तब ताड़कासुर ने भगवान शिव के वैराग्य रूप को देखते देखा और कहां की अगर मेरी मृत्यु हो तो सिर्फ आपके पुत्र द्वारा ही हो। ताड़कासुर जानता था, कि भगवान शिव एक वैराग्य जीवन व्यतीत कर रहे है, इसलिए पुत्र का होना असंभव था। तब भगवान शिव ने ताड़कासुर का वरदान दे दिया। वरदारन मिलते ही ताड़कासुर ने अपना आतंक फैला दिया। कई वर्षो के अन्तराल बाद माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह हेतु तप किया और अपने शक्ति रूप को जानने के बाद भगवान शिव से विवाह किया। विवाह के बाद माता पार्वती ने कार्तिक को जन्म दिया जिसने भगवान शिव की सहायता से ताड़कासुर का वध किया। मान्यता है कि ताड़कासुर जब अपनी अन्तिम सांसे ले रहा था तब उसने भगवान शिव से क्षमा मांगी। भगवान शिव ने उसे क्षमा कर कहा कि कलीयुग में लोग तुम्हारें नाम से मेरी शिव की पूजा करेगें। इसलिए इस स्थान का नाम ताड़केर महादेव पड़ा। भगवान शिव की पौराणिक मूर्ति की पूजा की जाती है। ताड़केर महादेव में इन दिनों देश भर के शिव भक्तों का आना जाना लगा हैं। यह शिव मन्दिर जहां शान्ति व सुख का प्रतीक है वहीं यहां पूर्जा अराधना करने से कई पापों का भी छय होता है। इस महादेव के मंदिर में प्रति वर्ष महाशिवरात्रि के त्योहार पर जलाभिषेक करने की बड़ी भारी मान्यता है। ताड़केर महादेव मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि भगवान शिव अभी भी इस स्थान पर है और गहरी नींद में है। यह मन्दिर में जहां प्रकृति के अनुपम उपहार का प्रतीक सा है। वहीं यहां भक्तों द्वारा घंटी दान करने की पम्पंरा अदभुत है। सड़क से मंदिर तक तीन सौ मीटर का रैन सेल्डर बना हुआ है और हर समय यहां ठंड का अहसास होता है।