G-KBRGW2NTQN हर पल हो सावन का अहसास – Devbhoomi Samvad

हर पल हो सावन का अहसास

लोक गीतों, फिल्मों और लोक कहावतों से लेकर लोक जीवन के तमाम पहलुओं में सावन पर अपार और मुग्धकारी सृजन हुआ है जो सदियों से जन-मन को उल्लसित, उत्तेजित और उत्साहित करता हुआ ताजगी और नित नवोन्मेषी ऊर्जाओं का संचार करता रहता है।

इस बार भी हर तरफ धरती से लेकर अम्बर तक और पिण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक सावन ही सावन का उल्लास झर रहा है। हर क्षेत्र और प्रान्त में अपने-अपने ढंग से सावन मनाया जा रहा है। सावन जनजीवन में इतने अधिक गहरे तक पैठ किए हुए है कि इसे जीवनाधार से कम नहीं आंका जा सकता।

सावन प्रकृति पूजा से लेकर प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण-संवर्धन और महिमागान का उत्सवी माह है जो न केवल प्रकृति के बहुविध सुनहरे रंग-बिरंगे नज़ारों के दर्शन और अनुभव का माह है बल्कि जीवों के लिए चराचर जगत के नाम समर्पित होकर प्रकृति रक्षा में जुटने के संकल्पों की भी याद दिलाता है।

सावन का यह महीना हम सभी को बहुत कुछ कहने आया है लेकिन हम हैं कि इसके संकेतों और महापरिवर्तन से सुकून के दरिया तक पहुंचने का मर्म समझ ही नहीं पाते और यही कारण है कि सावन एक माह भर हमारे आस-पास रहकर विदा ले लेता है और हम इंसान वैसे ही रह जाते हैं जैसे पहले थे। सूखे के सूखे, निष्ठुर और संवेदनहीन। और फिर खो जाते हैं अगले साल के सावन की प्रतीक्षा में।

बरसों से सावन में रमे रहने के बावजूद हम सावन के संकेतों को आज तक समझ नहीं पाए हैं और इसीलिए सब कुछ ‘ढाक के पात तीन के तीन’ जैसा ही बना रहता है। पंचतत्वांें से बने पिण्ड के लिए पंच महाभूतों का सर्वाधिक और अपार घनत्व इसी मास में हमें अनुभवित होता है जो कि तन-मन को इतना अधिक ऊर्जित कर देता है कि सभी पंच तत्व अपने पूर्ण यौवन के साथ छलकते और आनंद देते हैं।

हम अपने मन मन्दिर से लेकर दिमाग और पूरे के पूरे जिस्म में साल भर सावन का अनुभव कर सकते हैं यदि हमारे भीतर केवल और केवल सावन के प्रति अगाध आस्था और विश्वास हो। पर ऐसा हर कोई कर नहीं सकता।

हमारे भीतर ईर्ष्या, राग-द्वेष, स्वार्थ, कुटिलता और पारस्परिक ऊखाड़-पछाड़ के इतने अधिक घातक विष जमा होने लगे हैं कि ये हमारे अंदर की सारी सरलता, सहजता और सरसता को खा जाते हैं।

जब चित्त में मलीनता आ जाए, जीवन के लक्ष्य को भूल जाएं, दिमाग की गुफा में खुराफातों का मकड़जाल बिछ जाए और जिस्म में हरामखोरी व पराये खान-पान का स्वाद घर कर जाए, सब कुछ मुफत का कबाड़ने और उपयोग करने की आदत पड़ जाए तब इन दुर्गुणों और कुकर्मों की मिश्रित ऊर्वरा खाद को पाकर खरपतवारों की खूब सारी फसले उगने, पनपने और पुष्पित होने लगती है और इनसे उत्पन्न जहरीले फल अपने आस-पास, क्षेत्र और समाज में जहर भरने लगते हैं।

 इसका अन्दाजा उन लोगों को नहीं लग पाता जो कि पशुओं या मनोरंजन के परिणामस्वरूप अनचाही संतान के रूप में पैदा हो गए हैं। इन कुकर्मियों का फल समाज को भुगतना पड़ता है और कई-कई बार तो ऐसा होता है कि सदियों तक देश इन दुर्भाग्यशालियों और अनचाहे गर्भ समापन में विफलता के नतीजों को भोगने को विवश रहता है।

जीवन में हर पल सावन सा अहसास लाना मुश्किल जरूर है पर असंभव बिल्कुल नहीं। इसके लिए चित्त की शुचिता सबसे बड़ा कारक है। और यह सब आता है राष्ट्रीय चरित्र, मानवीय संवेदनाओं, नैतिक मूल्यों और परंपरागत संस्कारों के अवलम्बन से।

आईये अबकि बार के सावन से कुछ सीखें और आत्मसात करें प्रकृति के संदेश को, ताकि हमें बार-बार साल-दर-साल सावन की प्रतीक्षा न रहे बल्कि हर पल सावन का आनंद, उल्लास और अपार उत्साह हमारे भीतर छलकता रहे, सभी को आनंद से नहलाता रहे।

डॉ. दीपक आचार्य

9413306077

www.drdeepakacharya.com

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