यही दिन देखने के लिए उत्तराखंड राज्य की मांग की थीं ❓
देवभूमि उत्तराखंड की मांग रोजगार के लिए थी। पहाड़ो में रोज़गार के साधनों की सीमितता,न्यूनता को देखते हुए देवभूमि के लोंगो ने जनांदोलन से इस राज्य को पाया। उम्मीद थी अपने लोग होंगे,रोजगार के साधन बडेंगे। लोगों की अपने जीवन स्तर में अपेक्षित सुधार की आशा थी।
लेकिन युवा हो चुके राज्य का इतना कमजोर होना की वो अपनी एक बेटी की सुरक्षा भी ना कर सकें- हजारों प्रश्नों को एक साथ पूछता हैं। आखिर कौन है इसका जिम्मेदार। अंकिता के साथ हुए इस नृशंस घटना जो नही होनी चाहिए थी, हुई, शर्मनाक है, अस्वीकार्य हैं। ये सब क्या हो रहा हैं। ये बात जाननी और समझनी जरूरी हैं कि घटना भले ही एक दिन घटी लेकिन इसके होने व बनने में एक दिन नही लगा। कई दिन लगें। कई लोगों लगें। कइयों का संरक्षण था। अधर्मी को पालने, पोषने, कुकृत्य करने तक में। ये शृंखला एक पदीय मोनोमिअल नही, पोलोनोमियल बहुपदीय हैं। धन, ऋण, गुणा, भाग से जहां इसको कंसिस्टेंटली आगे बढ़ना चाहिए था वही यह कट, काट कर शिफर,शून्य हो गयीं । बात आईने की तरह साफ हैं। कहीं न कही राजनैतिक, आर्थिक निजी स्वार्थ ने ऐसे लोंगो को आगे बढ़ाने का काम किया है। ऐसा नही कि पुलिस केस ना सुलझा सके, सक्षम व कुशल लोग है हमारे पास बशर्ते उन्हें काम करने में हमारा निज स्वार्थ प्रतिच्छेद ना करें।
मायूसी के इस दौर में सख्त अनुशासन हमें बचा सकता हैं। ये भले ही हमारी कार्यप्रणाली में लक्षित हो या फिर रणनीति में। राज्य को इस स्थित में देखते हुए दुःख होता हैं। जनता भारी गुस्से में हैं। गैरजिम्मेदाराना व्यवहार, नज़रिया, सेवा का अभाव, अंग्रेजी मानसिकता, लाटसाहब पन जनता को उनके द्वारा ही जन्म किये गये राज्य से अलग कैसे कर सकती हैं❓। भर्ती घोटाला हो या फिर कोई कांड निराशा धीरे -धीरे घर करती जा रही है। राज्य के कोने – कोने से न्याय दो की आवाजें गुंजायमान हैं। देवभूमि का ये रंग देखकर देव भी अचंभित हैं। उचे हिमालय पर बैठे देवी, देवता से पर्यटन के नाम पर किस प्रकार का झोल, लगा रहे हैं किसी से छुपा नही है।लेकिन गुस्से की ये आवाज हुक्कामरानो को- सुधर जाओ वरना, की चेतावनी भी दे रही हैं।
देवभूमि का जनांदोलन अगर हक़ से अपना राज्य लेना जानती है तो इसी आन्दोलन में परिवर्तन के बीज को भी रखती हैं।
गलती करने वालों को कड़ी सज़ा मिले भले ही वह भर्ती घोटाले हो या फिर जघन्य कांड करने वाले । लेकिन ये सजा मिलते हुए दिखनी भी चाहिए बिना किसी कद, काठी के । तभी लोंगो का विश्वास शासन करने वालों पर हो सकता हैं। विश्वास की इस डोर को मजबूत करने के लिए राजनीति से ऊपर उठ उत्तराखंड के भले के लिए सच्चे मन,सेवाभाव, समर्पण से काम करना होगा।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ उत्तराखंड
(लेखक राज्य आंदोलनकारी रह चुके हैं)