सिर्फ तुम ही क्यों?
मैंने कभी माना ही नही की तुम नही हो,
और तुमने कभी जाना ही नही की मैं भी हूं।
तुम्हारे जानने और मानने में,
अक्सर गणित बीच में आ जाती हैं।
जिसमें हम कई चीजों को मानते इसलिए हैं
की उन्हें सिद्ध कर सकें,
और सिद्ध करते भी है
की माना हुआ सही है।
लेकिन तुमने खुद को सही माना बगैर सिद्ध किए,
तो कैसे मान ले कि तुमने सही माना,
सिर्फ इस आधार पर कभी नही
की तुम दूसरे लिंग से हो।
भला मानने,जानने में
लिंगभेद क्यूं ?।
प्रेम “नेचुरल”
उत्तराखण्ड