G-KBRGW2NTQN संसदीय सम्मान का मखौल बना दिया है सरकार ने : डाॅ.जया शुक्ला – Devbhoomi Samvad

संसदीय सम्मान का मखौल बना दिया है सरकार ने : डाॅ.जया शुक्ला

अटल बिहारी वाजपेई की भाजपा के नेतृत्व में राजग गठबंधन की सरकार थी, जब 13 दिसम्बर को हमारी संसद पर पाकिस्तानी आतंकवादियोँ ने हमला किया था। संसद के बाहर ही हमारे वीर सुरक्षाकर्मियोँ ने अदम्य साहस के साथ उन आतंकवादियों को रोक दिया था, अपने प्राणोँ की परवाह न करते हुए, और प्राण भारतमाता को समर्पित कर सर्वोच्च बलिदान दे दिया था। अभी भी भाजपा की सरकार है, जिसमेँ अटल बिहारी जी की सरकार से बेहद बड़ा अंतर है, विशेषकर देश के प्रति गंभीरता मेँ। इस बार उसी 13 दिसम्बर को बेहद कायराना तरीके से, एक भाजपाई सांसद की मदद से संसद मेँ घुसकर, हमले की शर्मनाक और हास्यास्पद नाटकीय पैरोडी मंचित की गई है। यह घटनाक्रम न केवल शर्मनाक है, बल्कि पहले वाले हमले के शहीदोँ की शहादत का घोर अपमान भी है।
इस घटना को लेकर स्वाभाविक रूप से कई प्रश्न हर हिन्दुस्तानी के हृदय मेँ उठ रहे हैँ; न केवल इस घटना को लेकर, बल्कि इसके बाद के भाजपा सरकार के रवैये को लेकर भी। कुछ युवा दर्शकदीर्घा से संसद की कार्यवाही के बीच कूद पड़े, धुएँ वाले छोटे सिलिंडर, जो नाटको मेँ काम आते हैँ, उनसे धुआँ छोड़ा, और स्वयं को बहादुर दिखानेकी चेष्टा की, जो कि वह नहीँ थे।

किन्तु मात्र संसद मेँ कूद जाने भर से कोई भगतसिंह नहीँ बन जाता ! भगतसिंह मातृभूमि की आज़ादी के लिये कूदे थे। वह जानते थे कि अंग्रेज़ सरकार उन्हेँ भयानक से भयानक दंड देगी, जिसके लिये वह तैयार भी थे, उत्साहित भी थे।किन्तु यह लोग जानते थे कि इनका कुछ भी नहीँ बिगाड़ा जायेगा। यह सभी भाजपा / संघ के कार्यकर्का थे, इसे जाँच द्वारा जाना जा सकता है। इन्हेँ घुसना भी भाजपा सांसद के द्वारा मिला, मुख्य आरोपी का पिता भी भाजपा वरिष्ठोँ का नज़दीकी है। संसद मेँ कूदे तो भगतसिंह भी थे, पर अपने मुद्दोँ के साथ, जिसके पर्चे सदन मेँ डालते हुए कूदे थे। यह लोग तो मुद्दाविहीन थे, संभवतः इनके संचालक इनको मुद्दा देना भूल गये। यह भी संभव है कि इस घटना के जो रंग देने की उन्होँने सोची थी, वह रंग वह नहीँ दे पाये क्योँकि आम जनता की प्रतिकृया बड़ी नकारात्मक रही।
श्री सत्यपाल मलिक तथा सुब्रह्मण्यम स्वामी भी यह बात बता चुके हैँ कि वोट और सत्ता हासिल करने के लिये वर्तमान शासक किसी भी सीमा तक जा सकते हैँ, कुछ भी कर सकते हैँ। ऐसे कार्योँ से देश के लिए दूरगामी परिणाम बहुत निकृष्ट भी हो सकते हैँ। किन्तु ऐसे कार्य करनेवाले देश हित से ज़्यादा अहमियत अपने हित को देते हैँ, जो देशद्रोह की श्रेणी मेँ आता है। कई तरह की संभावनाएँ इस घटना के पीछे के कारणोँ को लेकर मन मेँ आती हैँ। संभव है कि आम जनता मेँ अपने प्रति अत्यधिक रोष देखकर, 2024 के चुनावोँ को ध्यान मेँ रखकर जनता मेँ संवेदना जागृत करनी चाही हो, किन्तु मात्र धुएँ का अटैक देखकर संवेदना नहीँ जागती, हँसी आती है।

यह भी संभव है कि आतंकियोँ का भय दिखाकर देश मेँ इमरजेन्सी लगा कर चुनाव टालते, किन्तु भय इससे अधिक बड़ी बात का है; इस घटना का दोष मढ़ कर विपक्षी सांसदोँ की संख्या कम करना, ताकि मनोनुकूल परिवर्तन संविधान मेँ किये जा सकेँ। इन्हेँ संभवतः भय है कि मशीन की मदद के बावजूद यह 2024 मेँ सत्ता खो देँगे, अतः वह कार्य अभी ही कर लिया जाए ! निश्चय ही ऐसे परिवर्तन, जो “संशोधन” के नाम से आयेँगे, लोकतंत्र के लिये हानिप्रद होँगे, अतः ऐसी स्थिति मेँ विपक्षी सांसदोँ की संख्या कम करना आवश्यक होगा। किया भी यही गया।

आश्चर्यजनक रूप से विपक्ष के पूरे 14 सांसद निलंबित हुए, और जिस भाजपाई सांसद ने आरोपी को भीतर आनेका पास दिया, वह आराम से संसद मेँ बैठा है। सफ़ाई मेँ श्री ओम बिड़ला समझ मेँ नहीँ आनेवाला तर्क देते हैँ, “मैँ जज नहीँ, सभापति हूँ, सभा नियमोँ से चलती है”। पर कौन से नियम ?

संसद भारत का केंद्र है, जहाँ देशभर का प्रतिनिधित्व है, और देश की आत्मा वहाँ बसती है। संसद पर हमला देश की अस्मिता पर हमला है। किसी भी प्रधानमंत्री और विशेषकर गृहमंत्री को तुरन्त ही ऐसी घटना का संज्ञान लेकर कार्यवाही करनी चाहिये । किन्तु हर अपेक्षा के विरुद्ध प्रधनमंत्पी और गृहमंत्री मौन हैँ। शायद उनके लिये पार्टी को जिताना देश से अधिक महत्वपूर्ण है। पर जिनको न तो जलता मणिपुर महीनोँ मेँ भी दीखा, न हमारी सीमा मेँ घुसकर बसाये जाते चीनी गाँव, जबकि पूरा देश ही उनको सह दिखाने की चेष्टा करता रहा, उनकी नीँद इस घटना से कहाँ खुलनेवाली है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *