G-KBRGW2NTQN लोक गायक प्रह्लाद मेहरा का हृदय गति रुकने से निधन – Devbhoomi Samvad

लोक गायक प्रह्लाद मेहरा का हृदय गति रुकने से निधन

नैनीताल/हल्द्वानी। उत्तराखंड के लोक गीत-संगीत जगत के लिए एक बेहद दु:खद समाचार है। उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक प्रहलाद मेहरा का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। हल्द्वानी के कृष्णा अस्पताल में उन्होंने बुधवार अपराह्न अंतिम सांस ली। प्रह्लाद मेहरा के गाये गीत खासकर बेड़ू पाको, चांदी बटना, दाज्यू कुर्ती कॉलर मां, ऐजा मेरा दानपुरा, रंगभंग खोला पारी, हाय काकड़ी झिलमा, चंदना म्यारा पहाड़, न्योली, मासी को फूल, पहाड़ की चेली ले व पंछी उड़ि जानी आदि काफी प्रसिद्ध रहे हैं। वर्तमान में वह नैनीताल जनपद के लालकुआ बिंदूखत्ता के संजय नगर में रहते थे।

उनके निधन से पूरे उत्तराखंड में शोक की लहर है। प्रहलाद मेहरा कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक गायक थे, जो लगातार कुमाऊं की संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रहे थे। ऐसे में अचानक उनके निधन से लोक कलाकार बेहद दुखी है। प्रह्लाद मेहरा के निधन पर राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पूर्व मुख्यमंत्री एवं महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी समेत अन्य लोगों ने दु:ख प्रकट किया है, प्रहलाद मेहरा के निधन से पूरे राज्य भर में शोक की लहर है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए सोशल मीडिया पर लिखा है, ‘प्रदेश के सुप्रसिद्ध लोक गायक प्रह्लाद मेहरा का निधन लोक संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। प्रह्लाद दा ने लोक संगीत के माध्यम से हमारी संस्कृति को वि पटल पर पहचान देने का अविस्मरणीय कार्य किया। आपके द्वारा गाए गए गीत सदैव देवभूमि की संस्कृति को आलोकित करेंगे।’ वहीं पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अपने शोक संदेश में कहा है, ‘अपनी मधुर वाणी से कुमाउनी गीतों को अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक ले जाने वाले उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध लोकगायक, बाल्यकाल से मेरे अति प्रिय रहे छोटे भाई प्रह्लाद मेहरा के निधन से मन एवं हृदय कष्ट में है। उनका संघषर्मय जीवन प्रदेश की युवा पीढ़ी के लिये प्रेरणा का श्रोत रहेगा।

प्राप्त जानकारी के अनुसार दिवंगत लोक गायक प्रह्लाद सिंह मेहरा का जन्म 4 जनवरी 1971 को पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील के चामी भेंसकोट में शिक्षक रहे पिता हेम सिंह व माता लाली देवी के घर में हुआ था। प्रहलाद को बचपन से ही कुमाउनी गीत गाने और परंपरागत कुमाउनी वाद्य यंत्र बजाने का शौक रहा और इसी शौक को प्रहलाद मेहरा ने अपना काम बना लिया। वह स्वर सम्राट गोपाल बाबू गोस्वामी और गजेंद्र राणा से प्रभावित होकर उत्तराखंड के संगीत जगत में आए। वर्ष 1989 में अल्मोड़ा आकाशवाणी में उन्होंने स्वर परीक्षा पास की और वह अल्मोड़ा आकाशवाणी के ‘ए’ श्रेणी के गायक एवं उत्तराखंड के संस्कृति विभाग से पंजीकृत कलाकार भी रहे। उन्होंने 150 से अधिक बच्चों को भी संगीत सिखाया। वह देश के अनेक बड़े शहरों में स्टेज पर लाइव प्रस्तुतियां भी दे चुके हैं।

वह अपने पीछे पत्नी हंसी देवी, पुत्र मनीष, नीरज व कमल मेहरा को शोक संतप्त छोड़ गये हैं। उनके पुत्र नीरज मेहरा वर्ष 2016 में छात्र संख्या के लिहाज से कुमाऊं विविद्यालय के सबसे बड़े महाविद्यालय एमबीपीजी के निर्दलीय छात्र संघ अध्यक्ष रहे हैं। उनके छोटे भाई मनोहर सिंह मेहरा आरएसएस से जुड़े हैं।

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