क्या होता है नोबल शांति पुरस्कार
नोबल पुरस्कारों का सम्मोहन और उससे जुड़े विवाद तो जगजाहिर हैं पर बहुधा यह भुला दिया जाता है कि एल्फ्रेड बर्नार्ड नोबल कौन थे और उन्हें विशेषकर शान्ति पुरस्कार देने की प्रेरणा कैसे मिली थी? यह पूरा घटनाक्रम एक कहानी की तरह ही रोचक और दिलचस्प है। एल्फ्रेड नोबल की मृत्यु 10 दिसम्बर 1886 को हुई थी इसलिए इस तिथि पर ही हर साल यह वितरण समारोह होता है। नोबल स्वयं स्वीडन में रसायन इंजीनियर थे और उन्होंने डायनामाइट का आविष्कार किया था। उन्होंने अपने मरने के बाद कुल मिलाकर 9.2 मिलियन डालर की सम्पत्ति छोड़ी थी जिस पर नोबल फाउन्डेशन द्वारा निवेश के आधार पर अर्जित ब्याज की राशि वार्षिक पुरस्कारों के रूप में दी जाती है। इस निवेश की आय का मूल्य आज बहुत बढ़ चुका है। सन 1970 में जब अर्थशास्त्राी पाल सैम्युअलसन को यह पुरस्कार दिया गया था तब यह राशि रू. 77000 डालर थी। आज यह बढ़कर 10 लाख डालर हो चुकी है। नोबल शान्ति पुरस्कारों की एक अत्यन्त दिलचस्प कहानी है।
यह शान्ति पुरस्कार एल्फ्रेड नोबल और बेर्था वान सटनर की दोस्ती का परिणाम था। 1876 में एक समाचार-पत्रा में एक विज्ञापन प्रकाशित होता है: ‘पेरिस के एक वयस्क, संभ्रान्त, धनाढय व्यक्ति को ऐसी ही एक उदार विचारों वाली भाषाविद् स्त्राी सचिव की जरूरत है, जो घर की देखरेख भी कर सके और सचिव का कार्य भी संभाल सके। इस विज्ञापन को देखकर काउंटेस बेर्था किंस्की का प्रवेश एल्फ्रे़ड नोबल के जीवन में होता है। बेर्था की आयु उस समय तेंतीस वर्ष की थी जो उस समय प्रौढ़ आयु मानी जाती थी। एल्फ्ऱेड नोबल तैंतालीस वर्ष के थे। बेर्था की शिक्षा-दीक्षा काफ़ी सम्पन्न ढंग से हुई थी-यद्यपि वह उस समय साधनहीन व विपन्न थी।
एल्फ्रे़ड नोबल योरोप के प्राचीन सम्भ्रान्त घराने के थे। बेर्था के मन में निराश प्रेम की पीड़ा थी और नोबल एक भटकते हुए अकेले आदमी की व्यथा भोग रहे थे और किसी साथी की खोज में थे जो उनके अकेलेपन को बंटा सके। निराशा और अकेलेपन की पीड़ा से बंधे इन दो प्राणियों के मिलन ने नोबल शान्ति पुरस्कार को जन्म दिया। शुरू से ही दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। एल्फ्रे़ड ने बेर्था को अपनी कविताएं दिखायी जो उसे बहुत पसंद आयी और बेर्था ने उसे निराश प्रेम की अपनी कहानी सुनायी।
बेर्था अंग्रेजी, फ्रांसीसी और जर्मन तीनों भाषाओं पर सामान अधिकार रखती थी। उस की मां वियना में वान् सट्नर परिवार में गवर्नेंस का काम करती थी। सट्नर परिवार के छोटे बेटे आर्थर दान् सटनर को बेर्था में पूर्णता के दर्शन हुए और दोनों प्रेम-सूत्रा में बंध गये लेकिन धनी सट्नर निर्धन बेर्था के साथ परिणय-सूत्रा में कैसे बंध सकते थे? बेर्था सट्नर से सात वर्ष बड़ी भी थी। इसी समय एल्फ्रेड नोबल का यह विज्ञापन बेर्था के लिए महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। एल्फ्रेड नोबल ने बेर्था की कहानी सुनी और उस के साहस की दाद दी। कहाः ‘थोड़ा समय बीतने दो। नयी जिन्दगी और नये प्रभावों में तुम दोनों एक दूसरे को भूल जाओगे और सभ्भवतः वह तुम से भी पहले तुम्हें भूल जायेगा‘। सच में बेर्था की नयी जिन्दगी के इस स्वप्न में एल्फ्रेड ने खुद को भी शामिल किया होगा।
एल्फ्रेड ने बेर्था को अपना सचिव बनाया और पेरिस के अपने आलीशान भवन में उस के लिए एक शानदार निवास का निर्माण कराना शुरू कर दिया लेकिन व्यापार सर्वोपरि था और उस के लिए उन्हें भागदौड़ करनी पड़ती थी। स्टाॅकहोम से दो दिन बाद ही बुलावा आ गया। बेर्था को दो तार मिले। एक स्टाॅकहोम से, जिस में लिखा था ‘सुरक्षित पहुंच गया। एक सप्ताह में पेरिस वापस आ जाऊंगा।‘ दूसरा वियना से, जिस में लिखा था ‘तुम्हारे बिना जीना दुश्वार है।‘
जब नोबल घर आये तो घर सूना था। बेर्था वियना में आर्थर वान् सट्नर के पास चली गयी थी और उन के साथ दांपत्य-सूत्रा में बंध गयी थी। जैसा कि दोनों को मालूम था बेर्था उस परिवार को स्वीकार नहीं हुई। दोनों को भाग कर काॅकेशस चला जाना पड़ा जहां से वे दस वर्ष बाद लौटे। उस समय तक नोबल ने अपनी विशाल ‘डाइनामाइट ट्रस्ट कम्पनी लिमिटेड‘ की स्थापना कर ली थी। आर्थर सट्नर और बेर्था संगीत और भाषा के शिक्षक के रूप में वर्षों संघर्ष करने के बाद पत्राकार और लेखक के रूप में प्रतिष्ठित हो गये थे। सब से अधिक महत्त्वपूर्ण तो यह है कि बेर्था कट्टर शांतिवादी हो गयी थी।
इस सारे वर्षों में बेर्था और नोबल का सम्पर्क बना रहा था। उनकी पुनः मुलाकात हुई। नोबल भी अपने को शान्तिवादी मानते थे लेकिन दोनों में इस बात पर मतभेद था कि युद्ध को समाप्त करने के लिए क्या तरीका अपनाया जा सकता है। नोबल का यकीन था कि यदि वह कोई ऐसा पदार्थ या यंत्रा पा लें जो ‘सार्वजनिक संहार की भयावह क्षमता रखता हो‘ तो युद्ध असंभव हो जायेगा। वह अपनी जिन्दगी और अधिक बड़े और भयंकर विस्फोटक की खोज को अर्पित कर चुके थे।
बेर्था दूसरे साधनों पर विश्वास करती थी। वह पूरी लगन से एक प्रचारवादी उपन्यास ‘हथियार रख दो‘ लिख रही थी, जिसने प्रकाशित होने पर योरोप में तूफान ला दिया था। परिणामस्वरूप वह बड़े-बड़े शहरों में शान्ति सम्मेलन करने लगी। नोबल ने एक सुन्दर प्यारा पत्रा इस उपन्यास के प्रकाशन के बाद बेर्था को लिखा था जिस में उपन्यास की सराहना की गयी थी। पत्रा के अंत में लिखा था ‘सदा के लिए तुम्हारा और सदा से जो अधिक होता है उसके लिए भी‘ लेकिन बेर्था जो चाहती थी, वह इस पत्रा में नहीं था। बेर्था चाहती थी कि यह ‘डाइनामाइट सम्राट‘ उस की विचारधारा मानने लग जाये। नोबल का उस समय भी यह दृढ़ मत था, कि ‘मेरे कारखाने तुम्हारे शान्ति-सम्मेलनों से कहीं पहले युद्ध को समाप्त कर देंगे।’
अन्ततः बेर्था की ही विजय हुई। एल्फ्रेड नोबल को जब यह महसूस हुआ कि इस से उन के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं होती तो वह वह बेर्था के शान्ति आंदोलन को धन से ही नहीं बल्कि व्यावहारिक सुझावों द्वारा भी समर्थन देने लगे। विरोधी राष्ट्रों के लिए उन्होने ‘शान्ति अवधि‘ की ही नहीं, ‘सामूहिक सुरक्षा‘ की विचारधारा भी रखी। अन्त में 7 जनवरी 1893 को बेर्था के नाम अपने एक पत्रा में उन्होंने पहली बार शान्ति-पुरस्कार का उल्लेख किया। लिखा: मैं चाहता हूं कि मेरी विशाल सम्पत्ति का एक अंश ऐसे पुरस्कार के लिए हो जो योरोप में शान्ति के विचार को बढ़ावा देने वाले स्त्राी या पुरूष को दिया जाया करे।
नोबल के अकेले जीवन का अन्त 1896 में हुआ। उनकी वसीयत के अनुसार प्रथम शान्ति पुरस्कार 1901 में बेर्था को दिया जाना चाहिए था लेकिन यह पुरस्कार 1905 में उसको प्राप्त हुआ। आज तो इस शान्ति पुरस्कार पर हर वर्ष सारी दुनियां की आंखें लगी रहती हैं।