नई दिल्ली। उत्तराखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व मंत्री किशोर उपाध्याय का कहना है कि उत्तराखंड के जंगल, जमीन और जानवरों को बचाना केवल उत्तराखंड की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पूरे देशवासियों की जिम्मेदारी है। उनका मानना है कि यदि उत्तराखंड का अत्यधिक दोहन व यहां के जंगल खत्म कर दिए गए और जमीन पर बाहरी लोगों का कब्जा हो गया तो प्रदेश का पर्यावरण संतुलन बिगड़ जाएगा। यहां की नदियां सूख जाएगी, जलस्रेत कम हो जाएंगे, जिसका नुकसान पूरे देश और दुनिया को होगा ।
इन्ही सब मुद्दों को लेकर वह 20 जुलाई कों दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक दिन का अनशन करेंगे। इन दिनों दिल्ली में आंदोलन की तैयारी कर रहे किशोर ने बताया कि दिल्ली में संसद के मानसून सत्र के दौरान अनशन करने का मकसद यही है कि प्रधानमंत्री से लेकर सभी राजनीतिक दलों के सांसदों के ध्यान में यह बात लाई जाए कि उत्तराखंड जैसे पर्यावरणीय असंवेदनशील राज्य की तरफ ध्यान दिया जाए। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में 72 हिस्से में जंगल है। गंगा-जमुना जैसी नदियां उत्तराखंड से निकलती हैं। उत्तराखंड देशवासियों के लिए पीने व सिंचाई योग्य पानी उपलब्ध करा रहा है, आक्सीजन बैंक की तरह काम कर रहा है। दुख की बात है कि उत्तराखंड के लोगों को बदले में न तो रयल्टी मिलती है और न ही अन्य सुविधाएं।
1980 से पहले जंगलों और जंगली उपज पर उत्तराखंड की जनता को जो अधिकार मिले थे, वह भी वन संरक्षण अधिनियम के जरिए छीन लिए गए। उनका कहना है कि यदि उत्तराखंडवासियों को रयल्टी मिल जाए तो वह जंगलों पर निर्भर नहीं रहेंगे और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी नहीं करेंगे। इससे पर्यावरण भी बचेगा और उत्तराखंड बचेगा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में 72 प्रतिशत जंगल होने के बावजूद यहां के गांव को और लोगों को आदिवासी का दर्जा नहीं दिया गया। यदि स्थानीय लोगों को आदिवासी का दर्जा दिया जाए तो आधी समस्या खत्म हो जाएगी। सरकारी नौकरी में भी आरक्षण मिलना चाहिए। वह कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में स्थानीय लोगों के अधिकारों और उत्तराखंड का पर्यावरण बचाने का मुद्दा चुनाव का प्रमुख मुद्दा होगा। उत्तराखंड में नए भू कानून की मांग की जा रहा है। उत्तराखंड में पूर्वोत्तर और हिमाचल जैसा कठोर कानून चाहिए, जिससे पहाड़ों में जमीन खरीदने की होड़ खत्म हो सके।
वह कहते हैं कि उत्तराखंड से बाहर के लोगों को यह नहीं समझना चाहिए कि उत्तराखंड के लोग उनका विरोध कर रहे हैं, बल्कि उन्हें यह समझना चाहिए कि उत्तराखंड में जमीन खरीद व उत्तराखंड को बचाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। यहां किसी का विरोध नहीं हो रहा है, बचाने की कोशिश हो रही है। अगर उत्तराखंड नहीं बचेगा तो देश का पर्यावरण और पानी भी नहीं बचेगा। उन्होंने कहा कि आज पूरे वि में जलवायु परिवर्तन बहुत बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है इसलिए भी उत्तराखंड के बर्फ से ढकी श्रृंखलाओं को बचाना जरूरी है।