जीत के लिए अंदर घुसना होगा।
सूरज की लालिमा देख
उजाला एक लाना होगा
देने बसुंधरा को प्राण
पौधा जरूर लगाना होगा।
तिमिर फैला चहुं ओर
कुछ टिमटिमाना होगा
तारे बनकर आसमां में
बिखरना होगा।
अंधेरों के बीच चलना है
खुद को जलाना होगा
रोशनी दिखेगी तभी
मंज़िल तक पहुचना होगा।
ऊचांई कुर्वानी लेती हैं
पथरीली,काटों भरी राहों में चलकर
चिह्न छोड़ जाती हैं
अवशेष स्मृति देह में रहकर
पावों में घाव गिनकर नही
चलकर मिटाना होगा ।
पैमाना कोई हो
खतरा मापना होगा
टूटेंगे हज़ारों बार मगर
बार-बार जुड़ना होगा
जुनून-ए-जिद ऐसी
साथ रखनी होगी।
सफलता-असफलता
पाबंद हैं वक़्त के
भीतर बैठा मन
समझता होगा
खेल जीवन का
नही ज्यादा अंतर
हार-जीत का
पुरुस्कार-तिरस्कार
मान-अपमान का
बस एक बार सिर्फ एक बार
गहरे जल में उतरना होगा।
पाने मोती जीवन के इधर
गहरे पानी में उतरना होगा
हाथ आये हार या जीत
हार से ही जीत तक
अंदर घुसना होगा।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ उत्तराखंड