G-KBRGW2NTQN राजनीतिक अस्मिता की रक्षा करने में चूक गए उत्तराखंड के राजनेता : जोशी – Devbhoomi Samvad

राजनीतिक अस्मिता की रक्षा करने में चूक गए उत्तराखंड के राजनेता : जोशी

उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी की संगोष्ठी में हुआ मंथन
अल्मोड़ा। यहां शिखर होटल में उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी द्वारा बुलाई गई खतरे में है उत्तराखंडी अस्मिता विषय पर आयोजित संगोष्ठी में प्रदेश सरकार से त्रिवेंद्र सरकार द्वारा कृषि भूमि की असीमित खरीद के लिए बनाए गए काले कानून को तत्काल निरस्त करने, उत्तराखंड को पूर्वोत्तर राज्यों व देश के अन्य क्षेत्रों की तरह संविधान के अनुच्छेद 371 के अन्तर्गत संरक्षण हेतु केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने एवं पर्वतीय क्षेत्रों में बेनाप भूमि को ग्राम समाज को सौंपने की मांग की गई। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता, जाने माने पत्रकार, साहित्यकार नवीन जोशी ने कहा कि राज्य के राष्ट्रीय नेताओं के दबाव में उत्तराखण्डियों ने राज्य की सांस्कृतिक पहचान को देश व दुनिया में बखूबी स्थापित किया पर वे पूर्वोत्तर राज्यों की तरह यहां की राजनीतिक अस्मिता की रक्षा करने में चूक गए। जिससे उत्तराखंड कि यह दुर्दशा हुई है। और राज्य अस्मिता के सवाल की रक्षा के लिए अब खड़ा हो रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य बनने के बाद यहां प्राकृतिक संसाधनों, जल, जंगल जमीन की निर्मम लूट हुई है। जिसके कारण राज्य अस्मिता की रक्षा एवं सशक्त भू कानून बनने की मांग बहुत तेज़ी से उभर रही है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक बदलाव की कुंजी सत्ता है।
उपपा की ओर से बुलाई गई इस संगोष्ठी में समाज के सभी वर्गों, सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पी.सी.तिवारी ने कहा कि उत्तराखंड में रहने वाले सभी लोगों के लिए यह ज़रूरी हो गया है कि वे राज्य बनने के 21 वर्षों में सरकारों की जन विरोधी नीतियों के कारण तबाह हो चुके इस हिमालयी राज्य को बचाने के लिए एकजुटता से संघर्ष की योजना बनाए। तिवारी ने कहा कि नानीसार, डांडा कांडा, चितई व राज्य के तमाम क्षेत्र में भ्रष्ट राजनैतिक नौकरशाहों व पूंजीपतियों, माफिया की तिकड़ी के चलते भू माफिया की अराजकता चरम पर पहुंच गई है।
संगोष्ठी में सामाजिक कार्यकर्ता ईश्वर दत्त जोशी ने कहा कि उत्तराखंड में राज करने वाली सरकार ने निर्धारित समय में भूमि का बंदोबस्त नहीं किया और पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि भूमि सिकुड़ रही है जिस कारण पलायन, विस्थापन, बेरोज़गारी यहां की नियति बन गई है। कर्मचारी नेता चंद्रमणि भट्ट ने कहा कि उत्तराखंड के नेता लूट खसोट कर मालामाल हो रहे हैं जबकि गोल्डन कार्ड के नाम पर कर्मचारी पेंशनरों की गारंटी कमाई की लूट की जा रही है पर कोई सुनने वाला नहीं है। पहरू के संपादक डॉ. हयात सिंह रावत ने कहा कि जब गांव गांव की कृषि ही नहीं बचेगी तो बोली भाषा और हमारी अस्मिता कैसे बचेगी। पैरा मिलिट्री (सेवानिवृत्त) संघ के मंडलीय अध्यक्ष मनोहर सिंह नेगी ने कहा कि सरकार अपनी विश्वशनीयता खो चुकी है। ज़िला बार एसोसियेशन के पूर्व अध्यक्ष महेश परिहार ने कहा कि उत्तराखंडी अस्मिता को तार तार करने की साजिशें शुरू से होती रही हैं जो अब असह्य हो गई हैं। संगोष्ठी में वरिष्ठ अधिवक्ता गोविंद लाल वर्मा, एड. जीवन चन्द्र, लोक वाहिनी के दयाकृष्ण कांडपाल, उपपा की केंद्रीय सचिव आनंदी वर्मा, सालम समिति के राजेन्द्र रावत, भारती पांडे, एड. नारायण राम, श्रीमती हीरा देवी, श्रीमती सरिता मेहरा, चितई के दीवान सिंह, हिमांशु पांडे, गोविंद सिंह शिजवाली समेत अनेक लोगों ने विचार व्यक्त किए।
संगोष्ठी में नानीसार, पाटिया, रैलापानी, मटेना, बाल प्रहरी के संपादक उदय किरौला, पुरातत्वविद् कौशल, वरिष्ठ रंगकर्मी नवीन बिष्ट, पूर्व प्राचार्या श्रीमती आनंदी मनराल, मो. शाकिब, रैलापानी की ममता, श्रीमती मीना, प्रकाश चन्द्र, नीरा बिष्ट, हेम पांडे, जगदीश राम, गिरीश चंद्र, चंद्रा देवी, श्रीमती चंपा सुयाल,
श्रीमती भावना मनकोटी, एड. वंदना कोहली,नसरीन, मोहम्मद शाहिद, दीपांशु पांडे समेत बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया।
करीब साढ़े तीन घंटे चली संगोष्ठी में उत्तराखंड की जनता से राज्य की अस्मिता, ज़मीन की रक्षा के लिए एकजुट होकर भ्रष्ट सरकारों व प्राकृतिक संसाधनों की लूट करने वाले गिरोह से लोहा लेने की अपील की गई।
संगोष्ठी में देश में तीन काले कानूनों के ख़िलाफ़ पिछले 9 माह से संघर्ष कर रहे किसानों के आंदोलन समर्थन करते हुए 27 सितंबर को भारत बन्द का समर्थन करने की घोषणा की गई।

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