बड़ा मशला
दुश्वारियां खर्च कर जरूर
अमन चैन में इजाफा होगा।
किसी किसान को शायद आज
खेतों में भरपूर पानी मिला होगा।
चंद रोटियों के जुगाड़ में
बेरोजगार कोई राह ताक रहा होगा।
नियत खरी समझकर सरकार
हुज़ूर वो घर लौट चला आया होगा।
सरहद पर निगहबानी करते जवान को
उसकी बेटी का पैगाम आया होगा।
पापा घर चले आओ–
सर्द मौसम से बचने सरकारी इंतज़ामात आया होगा।
बड़ी खोज, तरक्की कर मुल्क
आज एहतराम कर रहा होगा।
गिरी होंगी नफरत, घृणा की दीवारे
सुरक्षित रहने,रखने का सवाल मुक्कमिल मिल रहा होगा।
हुनरमंद ने मिले अवसर में
खुद को खूब खपाया होगा।
सपने जो दिखाये थे बड़े-बड़े
वो उतरकर जमीं पर
अब उग गया होगा ।
टूटी-फूटी पाठशाला में
मास्साब को पढ़ाने जाना होगा।
खोजी होगी दवा-दारू
सिलकने वाली मर्ज का इलाज मिला होगा।
उम्मीद जग सी गयी थी पल भर को
पॉव पसारे, बेसुध लेटे मरीज़ को
हस्पताल में डॉक्टर दिखा होगा।
पेट अन्न से रोटी चूल्हे में पककर
खाकर जरूर कोई सकूँ से सोया होगा
खबरें चली थी टीवी,अखबार,मीडिया में
जरूर कोई बड़ा मशला हल हुआ होगा।
सुनकर तुषारापात हुआ उम्मीदों का जब …………
पता चला सबको बाँटने वालों का
फिर एक बार और चुनाव होगा।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ खेती,राई-आगर
बेरीनाग,पिथोरागढ़, उत्तराखंड