G-KBRGW2NTQN आस्थावानों का केंद्र सिद्धबली बाबा का मंदिर – Devbhoomi Samvad

आस्थावानों का केंद्र सिद्धबली बाबा का मंदिर

देहरादून ।पर्वतीय क्षेत्र का प्रवेशद्वार कोटद्वार धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल के साथ ही पहाड़ की व्यावसायिक नगरी के रूप में भी जाना जाता है। ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व को समेटे हुए इस नगरी को कण्व नगरी के रूप में भी जाना जाता है । यहां कई धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल हैं। उन्ही में से एक है सिद्धबली मन्दिर।
चारों ओर से शिवालिक पर्वतमालाओं से घिरा और सदाबहार घने जंगलों से आच्छादित कोटद्वार एक रमणीक स्थल है। यहाँँ स्थित बाबा सिद्धबली का मंदिर उत्तराखण्ड के साथ ही पश्चिमी उत्तरप्रदेश के आस्थावानों का प्रमुख धार्मिक स्थल है।  मालन और खोह नदी यहाँ कलकल करती हुुुई बहती है। खोह नदी के किनारे  स्थित हैं , आस्थावानों का केंद्र  सिद्धबली बाबा का मंदिर। स्कन्द पुराण में भी इसका प्रमाण मिलता है।

गंगाद्वारतरे भागे गंगाया: प्राग्विभागके।
नदी कौमुद्वती ख्यात सर्वदारिद्रनाशिनी।।
अर्थात गंगाया द्वार हरिद्वार के उत्तर पूर्व यानी ज्ञान कोण के कौमुद्रतीर्थ के किनारे कौमुद्री नाम की प्रसिद्ध वीरता को हरने वाली नदी बहती है। जिस प्रकार गंगाद्वार माया क्षेत्र हरिद्वार एवं कुब्जाम्र ऋषिकेश के नाम से प्रसिद्ध हुए इसी प्रकार कौमुद्री खोह के नाम से विख्यात हुुुआ ।पौराणिक मान्यता के अनुसार इस स्थान पर चन्द्रमा ने शिव की घोर तपस्या की थी। कार्तिक की पूर्णिमा को भगवान शिव ने चन्द्रमा की तपस्या से खुश होकर उन्हें दर्शन दिए थे। इसलिए इस स्थान का नाम कौमुन्द पड़ा। दूसरी प्रचलित कथा के अनुसार इस शिला पर सिद्ध बाबा ने हनुमान जी की घोर तपस्या करके सिद्धियां प्राप्त की थी। इसलिए इस स्थान का नाम सिद्धबली पड़ा।  पहले यहां सिद्ध पिंडिया थीं। 80 के दशक में मन्दिर में बाबा की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गई। लोकमान्यता के अनुसार सिद्धबाबा को साक्षात गोरखनाथ माना जाता है।  गोरखनाथ को कलयुग में शिव अवतार माना जाता है। एक कथा के अनुसार नाथ सम्प्रदाय के गुरु  गोरखनाथ के गुरु मछेन्द्रनाथ बजरंगबलि के आज्ञा से चीन से सटे त्रिशयश राज्य की शासक मैनाकनी के साथ आश्रम का सुख भोग रहे थे। उनके तेजवस्सी शिष्य गुरु गोरखनाथ तक जब अपने गुरु  की यह बात पहुँची तो उनको बहुत ठेस पहुंची और अपने गुरु पर क्रोधित हुए। उन्होंने प्रण लिया कि वह मैनाकनी के चंगुल से गुरु मछेन्द्रनाथ को मुक्त करा कर लाएंगे। इसके बाद वह त्रिशयश राज्य की और निकल पड़ते हैं। बजरंगबली को जब इस बात का पता चला तो वह रूप बदलकर सिद्धबली के पास गुरु गोरखनाथ का रास्ता रोकने पहुुँच गए। इस पर गुरु गोरखनाथ क्रोधित हो जाते हैं। इस पर हनुमान जी और गुरु गोरखनाथ के बीच भयंकर युद्ध छिड़ जाता है। बजरंग बली को आश्चर्य होता है कि वह एक साधारण साधु को भी परास्त नहीं कर पा रहे हैं तो होना ना हो यह दिव्य पुरुष भी कोई यति है। इसके बाद हनुमान जी अपने वास्तविक स्वरुप में आ जाते हैं। वह गुरु गोरखनाथ से कहते हैं, मैं तुम्हारे प्रकाष्ठता से बहुत प्रसन्न हुआ। दिव्य पुरुष तुम कोई भी वरदान मांग सकते हो। तब गुरु गोरखनाथ ने बजरंगबली से कहा, पवन पुत्र अगर आप मुझसे इतने ही प्रसन्न हैं तो आपको इस स्थान पर हमेशा प्रहरी की तरह रहना होगा और मेरे भक्तों का सदैव कल्याण करना होगा। बजरंगबली गोरखनाथ को वरदान देकर चले गए। कहा जाता है कि तब से बजरंगबली  इस स्थान पर साक्षात विराजमान रहते हैं,और इन्ही दो यतियों के सिद्धि के चलते इस धाम को सिद्धबली धाम कहा जाता है। प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार जब लक्ष्मण को बरछी लगी थी तो हनुमान जी लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी लेने सिद्धबलि के रास्ते हिमालय गए थे। ब्रिटिशकाल में कोटद्वार को नगरखाम स्टेट के नाम से पुकारा जाता था और इसका खाम सुप्रिमटेंड हुआ करता था। एक बार एक अंग्रेज अधिकारी ने इस स्थान के पास जंगल में बंगला बनवाया था,जिसे खाम बंगला के नाम से जाना जाता था। एक बार वह इस बंगले में रहने के लिये घोड़े पर सवार होकर आया। उसका घोड़ा जब सिद्धबली के पास पहुँचा तो  वह आगे नहीं बढ़ा तो उसने घोड़े पर चाबुक से प्रहार करना शुरू कर दिया। इसके बाद घोड़े ने उसे जमीन पर गिरा दिया। घोड़े से गिरकर वह अचेत हो गया। इस बीच सिद्ध बाबा ने उसे दर्शन दिए और आदेश दिया कि मेरे द्वारा पूजे जाने वाली पिंडियां खुले स्थान पर हैं, तुम उनके लिए स्थान बनाओ। तभी तुम इस बंगले में रह सकते हो। इसके बाद उस अंग्रेज अधिकारी ने इस स्थान का जीर्णोद्धार कराया। नए फसल होने पर लोग सबसे पहले सिद्धबली को भोग लगाते हैं।इसके पीछे भी एक कहानी प्रचलित है। एक बार गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ एक दिन डुगराल  गांव के निकट पहुँचे तो उन्होंने गांव के समीप कुछ दिन विश्राम करने का निर्णय लिया। एक दिन उन्होंने अपने शिष्य पवननाथ को समीपवर्ती आबादी वाले क्षेत्र (अब बिजनौर जनपद)  में  गाऊं वालों से कुछ अनाज और दूध लेने के लिए भेज़ा। जब पवननाथ गांव पहुंचे तो कुछ दुर्जनों ने उनको अनाज और दूध न  देकर एक गरीब के पास यह बोल कर भेज दिया की उसके पास अनाज के भंडार हैैं, सैकड़ों गाय हैं। उसके बाद पवननाथ उस व्यक्ति के पास पहुँचे तो उन्होंने देखा कि वह बहुत गरीब है। उसके पास अनाज का एक भी दाना नहीं है, ना ही कोई गाय। वह  खाली हाथ लौट गए। गुरु गोरखनाथ को खाली हाथ आने का कारण बताया तो उन्हें क्रोध आ गया। इसके बाद उन्होंने पवननाथ को भस्मी देकर उस गरीब की कुटिया के चारों ओर डालने का आदेश दिया। इसके बाद पवननाथ ने  भष्मी जैसे ही कुटिया पर बिखेरी वह  धनी व्यक्ति हो गया। उसके बाद  गुरु गोरखनाथ को वह आदर पूर्वक अपने यहां लाया उनको  भोजन करवाया । गुरु गोरखनाथ ने उस व्यक्ति के यह भोजन किया। तब से यह परंपरा है कि कोई भी  किसान खेत से फसल उठाता है तो सबसे पहले सिद्धबली बाबा को चढ़ाता है । कहा जाता है कि सिद्धबली को अनाज का भोग लगाने से बाबा की कृपा से फसल हमेशा अच्छी होती है। सिद्धबली में आटा, घी, गुड़,भेली से बना रोट ओ नारियल का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

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