भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम अनछुआ पृष्ठ-दादरा-नगर हवेली
मराठों और पुर्तगालियों के बीच चले लंबे संघर्ष के बाद 17 दिसम्बर,1779 को मराठा सरकार ने पुर्तगालियों से मित्राता सुनिश्चित करने के लिए अपने अधिकार क्षेत्रा के दादरा-नगर हवेली और उससे संलग्न कुछ गांवों को (तत्कालीन 12,000 रुपये का राजस्व) क्षतिपूर्ति के तौर पर पुर्तगालियों को सौंप दिया गया था। जनता द्वारा स्वयं बिना भारत सरकार की सहायता के 02 अगस्त, 1954 को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराने तक पुर्तगालियों ने इस भूभाग पर शासन किया।
1954 से 1961 तक यह प्रदेश लगभग स्वतंत्रा रूप से काम करता रहा जिसे ‘स्वतंत्रा दादरा एवं नगर हवेली प्रशासन’ ने चलाया लेकिन 11 अगस्त, 1961 को यह प्रदेश भारतीय संघ में शामिल हो गया है और तब से भारत सरकार से एक केंद्रशासित प्रदेश के रूप में इसका प्रशासन केंद्र शासन के अधीन है। पुर्तगाल के चंगुल से इस क्षेत्रा की मुक्ति के बाद से ‘वरिष्ठ पंचायत’ प्रशासन की परामर्शदात्राी संस्था के रूप में कार्य कर रही थी परंतु इसे 1989 में भंग कर दिया गया और अखिल भारतीय स्तर पर संविधान संशोधन के अनुरूप दादरा और नगर हवेली जिला पंचायत और 11 ग्राम पंचायतों की एक प्रदेश परिषद गठित कर दी गई।
दादरा और नगर हवेली 491 वर्ग कि.मी. में फैला छोटा सा केंद्रशासित प्रदेश है। यह गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों से घिरा हुआ एक छोटा सा भूखंड है। इसके दो भाग हैं एक दादरा और दूसरा नगर हवेली। निकटतम रेलवे स्टेशन वापी में है जो सिलवासा से 18 किलोमीटर दूर है।
दादरा और नगर हवेली में एक जिला, एक ब्लाक और 72 गांव हैं। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार इसकी आबादी 3,43,709 है। दादरा और नगर हवेली के गहन अध्ययन से पता चलता है कि इस क्षेत्रा में कई जनजातियां हैं जिनमें वरलाइ, कोंकण, धोडिया और डबलास हैं। ये आदिवासी लोग स्वतंत्रा, आत्मनिर्भर होते हैं और इनकी अपनी संस्कृति और विशिष्ट सामाजिक जीवन होता है। दादरा में तीन गांव हैं और नगर हवेली में सिलवासा शहर और 68 गांव शामिल हैं। हरे भरे जंगल, इठलाती नदियां, पर्वत श्रृंखलाएं और वनस्पतियों और जीवों की विभिन्न प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध यह छोटा सा केंद्र शासित प्रदेश सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल है।
इस क्षेत्रा में नवंबर से मार्च तक बहुत ही सुहावना मौसम होता है और यह समय यहां घूमने आने का सबसे अच्छा समय है। समुद्र से नजदीकी के कारण गर्मियों में तापमान बहुत ज्यादा नहीं होता और रातें बहुत सुहावनी होती हैं। दक्षिण-पश्चिमी मानसून जून से सितंबर तक रहता है। इस दौरान इस इलाके में बहुत जोरदार बारिश होती है। यहां बरसात लगभग 200 से 250 सेमी. होती है।
भारत की 1947 में आजादी के बाद, पुर्तगाली प्रान्तों में सक्रिय स्वतंत्राता सेनानियों तथा दूसरे स्थानों के बसे भारतीयों ने गोवा, दमन,दीव, दादरा एवं नगर हवेली की मुक्ति पर विचार किया। भारत के स्वतंत्रा होने से पहले से ही राष्ट्रपिता बापू की भी यही विचारधारा थी और उन्होने यह पुष्टि भी की कि – ‘गोवा (व अन्य अस्वतंत्रा इलाकों) को वर्तमान स्वतंत्रा राष्ट्र (भारत) के विरोधी कानूनों के चलते भी एक अलग इकाई के रूप में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।’
जब भारत 26 जनवरी 1950 को गणतंत्रा बना, तब फ्रांसिसी सरकार ने भारत के पूर्वी तट पर अपनी क्षेत्राीय संपत्ति खाली कर अपने उपनिवेश को भारत को सौंप दिया परन्तु पुर्तगाली सरकार ने तब भी भारत में अपने औपनिवेशिक क्षेत्रा पर कब्जा जमाए रखा। फलस्वरूप गोवा, दमन, दीव,दादरा, नगर हवेली तथा अन्य क्षेत्रों में स्वतंत्राता आन्दोलन और गहरा हो गया। केवल इसी कार्य के लिए लिस्बन में एक भारतीय दूतावास खोला गया ताकि गोवा के हस्तांतरण पर चर्चा की जा सके लेकिन पुर्तगाली सरकार ने न केवल गोवा की मुक्ति के बारे में बात करने से मना कर दिया बल्कि उन्होंने पहले से ही लागू दमनकारी उपायों को अपने परिक्षेत्रों में और भी तेज कर दिया।
1953 में पुर्तगाली सरकार से समझौते के लिए एक और प्रयास किया गया। इस बार उन्हें यह भी आश्वासन दिलाया गया कि परिक्षेत्रों की सांस्कृतिक पहचान उनके स्थानांतरण के बाद भी संरक्षित रहेगी और कानूनों व रीति रिवाजों को भी अपरिवर्तित रखा जायेगा। फिर भी वे पहले की तरह अपने हठ पर कायम बने रहे और यहां तक कि भारत द्वारा की गई पहल का जवाब देने से भी इनकार कर दिया। फलस्वरूप लिस्बन में स्थित भारतीय दूतावास को जून 1953 में बंद कर दिया गया।
इससे क्षुब्ध होकर गोवा सरकार के एक बैंक कर्मचारी – अप्पासाहेब कर्मलकर ने नेशनल लिबरेशन मूवमेंट संगठन की बागडोर संभाली ताकि वह पुर्तगाल-शासित प्रदेशों को मुक्ति दिला सकें। साथ ही साथ आजाद गोमान्तक दल (विश्वनाथ लावंडे, दत्तात्रोय देशपांडे, प्रभाकर सीनरी और श्री गोले के नेतृत्व में), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (राजा वाकणकर और नाना काजरेकर के नेतृत्व में) के स्वयंसेवक दादरा और नगर हवेली को मुक्त कराने के लिए सशस्त्रा हमले की तैयारी में जुट गये।
वाकणकर और काजरेकर ने स्थलाकृति अध्ययन और स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं जो पुर्तगाली क्षेत्रा की मुक्ति के लिए आंदोलन कर रहे थे, से परिचय और सटीक योजना बनाने के लिए 1953 में दादरा और नगर हवेली का कई बार दौरा किया। अप्रैल, 1954 में तीनो संगठनों ने मिलकर एक संयुक्त मोर्चा (युनाइटेड फ्रंट) बनाया और एलफिंस्टन गार्डन की एक बैठक में एक सशस्त्रा हमले की योजना बनाई। स्वतंत्रा रूप से कार्यरत एक और संगठन, युनाइटेड फ्रंट आफ गोअन्स ने भी इसी तरह की एक योजना बनायी।
फ्रांसिस मैस्करेनहास और विमान देसाई के नेतृत्व में युनाइटेड फ्रंट आफ गोअन्स के करीब 15 सदस्यों ने 22 जुलाई 1954 की रात को गुजरात के रास्ते घुसकर दादरा पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने उप-निरीक्षक अनिसेतो रोसारियो की हत्या कर दी। अगले ही दिन सुबह पुलिस चैकी पर भारतीय तिरंगा फहरा दिया गया और दादरा को मुक्त प्रान्त घोषित कर दिया गया। जयंतीभाई देसाई को दादरा के प्रशासन हेतु प्रशासनिक पंचायत का गठन कर उसका मुखिया बना दिया गया। एक सप्ताह के अंदर ही 28 जुलाई 1954 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आजाद गोमान्तक दल के स्वयंसेवकों ने भी गुजरात के रास्ते घुस कर नारोली की पुलिस चैकी पर हमला बोला और पुर्तगाली अफसरों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया और नारोली को आजाद करा लिया। अगले दिन, 29 जुलाई 1954 को स्वतंत्रा नारोली की ग्राम पंचायत की स्थापना करके उसे नारोली का प्रशासन सौंप दिया गया।
कप्तान फिदाल्गो के नेतृत्व में अभी भी पुर्तगाली सेना ने नगर हवेली में अवस्थित सिलवासा में अधिकार जमाया हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आजाद गोमान्तक दल के स्वयंसेवकों ने मौका देखते ही सिलवासा की परिधि में स्थित पिपरिया पर कब्जा जमा लिया। क्रांतिकारियों को करीब आते देख कप्तान फिदाल्गो ने स्वतंत्राता सेनानियों को आत्मसमर्पण करने की चेतावनी दी परन्तु वे सिलवासा की और बढ़ते रहे। अपनी पराजय को निश्चित देखते हुए कप्तान फिदाल्गो 150 सैन्य कर्मचारियों के साथ सिलवासा से 15 किमी दूर खान्वेल भाग गया। 02 अगस्त 1954 को सिलवासा मुक्त (स्वतंत्रा) घोषित कर दिया गया। कप्तान फिदाल्गो जो नगर हवेली के अंदरूनी हिस्से में छुपा हुआ था, को आखिरकार 11 अगस्त 1954 को आत्मसमर्पण करना पड़ा। स्वतंत्रा करा लेने के पश्चात एक सार्वजनिक बैठक में अप्पासाहेब कर्मलकर को प्रथम प्रशासक के रूप में चुना गया और उनकी सहायता के लिए एक पंचायत का गठन कर दिया गया।
स्मरणीय है कि स्वतंत्रा होने के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा दादरा-नगर हवेली को पुर्तगाली संपत्ति के रूप में मान्यता प्राप्त थी और तत्कालीन भारत सरकार ने इस क्षेत्रा को बार-बार निवेदन के बावजूद भी अपने नियन्त्राण में नहीं लिया, फलस्वरूप भारत के अंदर स्थानीय निवासियों द्वारा प्रशासित यह क्षेत्रा एक स्वयंभू राष्ट्र के रूप में कार्यरत रहा जिस पर न तो भारत का अधिकार था और न ही पुर्तगाल का।
1954 से 1961 तक, दादरा और नगर हवेली वरिष्ठ पंचायत द्वारा संचालित भारत की सीमाओं से चारों ओर से घिरे एक मुक्त (स्वतंत्रा) प्रदेश के रूप में अवस्थित रहा। जिस क्षेत्रा के निवासी अपने अधिकृत क्षेत्रा के साथ भारत में विलय को तैयार हों और भारत की सरकार उसे लेने को तैयार न हो, इसे विडम्बना नहीं तो क्या कहा जाय।
1961 में जब भारत ने सैनिक अभियान से गोवा को पुर्तगाली कब्जे से मुक्त किया, तब श्री बदलानी को एक दिन के लिए राज्य-प्रमुख बनाया गया। उन्होंने तथा भारत के प्रधान मंत्राी, जवाहर लाल नेहरु ने एक विलय-समझौते पर हस्ताक्षर किये और इस समझौते के अधीन दादरा और नगर हवेली का भी औपचारिक रूप से भारत में विलय सम्पन्न कर दिया गया।