श्रावण सौर मास का दूसरा सोमवार कल
ठीक से नियमों को समझकर ही चढ़ाना चाहिए शिवलिंग पर जल
देहरादून।
करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रतीक भगवान शिव की भक्ति के लिए सर्वोत्तम श्रावण मास का दूसरा सोमवार कल (आज) पढ़ रहा है। श्रद्धालु पूर्ण भाव भक्ति से आज ही दूसरा व्रत रख कर भगवान का पूजन और अभिषेक करेंगे।
उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि पूर्ण रूप से नियमों को समझने के बाद ही शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए अन्यथा सकारात्मक की जगह नकारात्मक प्रभाव प्राप्त हो जाता है।
शिवजी का अभिषेक करने के लिए तांबे का पात्र सबसे अच्छा माना जाता है, लेकिन इतना ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि तांबे के बर्तन से कभी भी दूध का अभिषेक नहीं करना चाहिए क्योंकि ये अशुभ माना जाता है और यह सिर्फ धार्मिक मान्यता के अनुसार नहीं बल्कि इसके पीछे पूर्ण रूप से वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है जल हमेशा बैठकर ही दें। यहां तक कि रुद्राभिषेक करते समय भी खड़े नहीं होना चाहिए।
देश एवं विदेशों में 1000 से अधिक श्रीमद्भागवत कथा प्रवचन करने वाले अनेक सम्मान उपाधियों से सम्मानित वर्तमान में शिक्षा विभाग में सहायक निदेशक आचार्य डॉ. चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि अभिषेक करते समय यह ध्यान रखना है कि लगातार एक धार में धीरे-धीरे भगवान शिव को जल चढ़ाना चाहिए. ध्यान रहे कि भगवान को हमेशा दाहिने हाथ से जल चढ़ाएं और बाएं हाथ से दाहिने हाथ का स्पर्श करें। स्त्रियां ओम नमः शिवाय के बजाय शिवाय नमः मंत्र का उच्चारण करें।
शिवजी को जल चढ़ाते समय ध्यान रखें कि जल हमेशा कलश से ही चढ़ाएं। शिवजी का अभिषेक करने के लिए तांबे का पात्र सबसे अच्छा माना जाता है. कांसे या चांदी के पात्र से अभिषेक करना भी शुभ माना जाता है. लेकिन जल अभिषेक के लिए कभी भी स्टील का बर्तन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
अपनी सटीक भविष्यवाणियों और मंत्रों की ध्वनि को यंत्रों में परिवर्तित कर जीवन की समस्त समस्याओं का हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डॉ घिल्डियाल बताते हैं कि शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय ध्यान रखना चाहिए कि आपका मुंह पूर्व दिशा की ओर नहीं होना चाहिए. क्योंकि पूर्व दिशा को भगवान शिव का मुख्य प्रवेश द्वार होता है और इस दिशा की ओर मुंह करने से शिव के द्वार में अवरोध होता है और वो नाराज हो जाते हैं।
जल देते समय आपका मुंह उत्तर दिशा की ओर हो क्योंकि उत्तर दिशा को शिव जी का बायां अंग माना जाता है जो मां पार्वती को समर्पित है. इस दिशा की ओर मुंह करके जल अर्पित करने से भगवान शिव और मां पार्वती दोनों की कृपा प्राप्त होती है। कभी भी भगवान की पीठ की तरफ खड़ें होकर पूजा नहीं करनी चाहिए और न ही जल चढ़ाना चाहिए। इससे सकारात्मक के बजाय पूजा का नकारात्मक प्रभाव प्राप्त होता है।
आचार्य श्री बताते हैं कि जिन लोगों की जन्मपत्री में मारक दशा चल रही हो अथवा किसी भी प्रकार से ग्रहों द्वारा उपद्रव हो रहा हो तो उनके लिए वह इस माह में यंत्र सिद्ध कर देते हैं जिनका बहुत दूरगामी प्रभाव पड़ता है। इसके लिए लोग उनसे संपर्क कर सकते हैं।