शिक्षक
घर की दहलीज पार कर
बच्चा, जब स्कूल तक पहुचता हैं।
संग दूसरों के बीच खुद को पाकर
फूला नही समाता हैं।।
पढता हैं विविध विषय वो
ज्ञान नवांकुर पाता हैं
जागृत इंद्रियों से धीरे -धीरे
आस – पास को पहचानने लगता हैं।।
शुरू होती हैं जानने, समझने, देखने,सुनने का सिलसिला,
फिर हर रोज एक नई सीढ़ी चढ़ता हैं।
अनुभव नया पाकर वह
पहले से अधिक बड़ा हो जाता हैं।।
सामना जब असल ज़िंदगी से होता,
सीना ताने खड़ा हो जाता हैं।
गिरता है, फिर उठता है
पर कभी गिरा नही रहता है
प्रयास हरदम जारी रख,
वो ख़ुद को फिर झोंक देता हैं।।
उसे पढ़ाया गया हैं कर्मण्येवाधिकारस्ते,
सम-विषम हो जो भी रण में
सबसे जूझकर
आगे बढता है।
उलझता भी है,सुलझता भी हैं,
हारता भी है और जीतता भी हैं,
लाभ -हानि,हर्ष -विषाद,ऊंच -नीच से,
टकरा – टकराकर फौलाद बन जाता हैं।।
पीछे मुड़कर देखना चाहा कभी,
तो ये आत्मविश्वास, सकारात्मकता आयी किधर से,
बरबक्स उन शिक्षकों का
चेहरा
आंखों में उतर आता हैं।
वो तस्वीर बड़ी हो जाती हैं
जिसमें हर अक्स
आईना सा साफ दिख जाता हैं।।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय
‘ नेचुरल’ उत्तराखंड