श्रीदेव सुमन की प्रतिमा लगाने की घोषणा की
देहरादून। अमर शहीद श्रीदेव सुमन के 77वें बलिदान दिवस के अवसर पर टिहरी नगर टीएचडीसी कॉलोनी में पहाड़ी प्रजामंडल के द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर महापौर सुनील उनियाल गामा ने श्रीदेव सुमन की प्रतिमा लगाने की घोषणा की। महापौर ने कहा कि श्रीदेव सुमन ने देश की आजादी के साथ ही टिहरी में सामंतशाही से पीड़ित जनता की बुलंद आवाज बनकर अपने प्राणों की शहादत दी। उन्होंने कहा, बीज यदि स्वयं खेल पाए तो, वह अपने को सड़ा गला कर दूसरों के लिए खाद का काम करता है। यही कार्य श्रीदेव सुमन ने अपनी शहादत देकर राजशाही से पीड़ित जनता की आवाज बने। महापौर ने कहा कि महापौर ने कहा कि श्रीदेव सुमन के ऊपर पिता का साया बचपन में ही उठ गया था। लेकिन ज्ञान पिपासा की भूख उन्हें देहरादून, दिल्ली, लाहौर, लुधियाना की ओर ले गई। अध्यापन के साथ-साथ उन्होंने अपना ज्ञान बढ़ाते गए। साथ ही गरीब, असहाय लोगों की सेवा करने के लिए वे हमेशा तैयार रहते थे। दिल्ली में गढ़ देश सेवा संघ बनाकर उन्होंने प्रवासी पहाड़ियों कि आवाज बुलंद की। मसूरी में पहाड़ से आए लोगों पर पूरे अत्याचार को पुरजोर विरोध किया। महापौर ने कहा कि श्रीदेव सुमन ने टिहरी राज्य में राजशाही से पीड़ित जनता की आवाज को बुलंद किया। उन्हें इसके लिए जेल में रखा गया। उन्हें कई प्रलोभन दिए ग, डराया धमकाया गया , उन पर कई अत्याचार किए लेकिन श्रीदेव सुमन तनिक भी नहीं झुके और और उन्हें इसके लिए अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़ी जो बाद में एक चिंगारी बनी। इस अवसर पर पहाड़ी प्रजा मंडल के अध्यक्ष बीर सिंह पंवार ने कहा कि देवभूमि वीर भूमि के नाम से भी जानी जाती है। हमारा गौरवशाली इतिहास है। श्रीदेव सुमन ने सामंतशाही से पीड़ित जनता को मुक्ति दिलाने में एक चिंगारी का कार्य किया। वह एक साहित्यकार अच्छे कवि थे। गरीबी से जूझते हुए उन्होंने अपना रास्ता खुद तय किया। पहाड़ी प्रजामंडल देवभूमि के ऐसे वीर सपूतों को नमन करता है और सरकार से मांग करता है कि हमारे ऐसे वीरों की वीर गाथा को बच्चों के पाठ्यक्रम में रखा जाए। ताकि आने वाली पीढ़ी अपने गौरवशाली इतिहास पर गौरवान्वित महसूस कर सकें। भाजपा महानगर के सह मीडिया प्रभारी गिरिराज उनियाल ने श्रीदेव सुमन की जीवनी पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर राज्यमंत्री मूरतराम शर्मा, गीताराम गौड़, गुड्डी थपलियाल, हरीश उनियाल, कमलेश लखेड़ा, आशाराम रतूड़ी, बीना गोदियाल, विनोद लेखवार, अजय पैन्यूली, आदि ने अपनी श्रद्धांजलि दी। संचालन गिरिराज उनियाल ने किया।