इंसाफ बरास्ता राजभवन?
वी.एस. पंवार
महाराष्ट्र सरकार के रवैये पर एक बार फिर सवाल खड़ा हुआ है। वह भी पुलिस के रवैये को लेकर। सुशांत सिंह राजपूत केस में उसकी किरकिसी जगजाहिर हो चुकी है। बीएमसी ने कंगना रनौत के दफ्तर पर बुलडोजर चलाया तो वह फरियाद लेकर राजभवन चली गई। राज्यपाल पहले ही बीएमसी के रवैये पर नाराजगी जता कर मामला तलब कर चुके थे। एक तरह से सरकार पर यह दबाब बन गया। उसके बाद नौसेना के पूर्व अधिकारी को शिव सैनिकों ने ठोका तो दो दिन बाद वे भी राजभवन का रुख कर गये। उससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उनकी खैरियत पूछ गये थे। अब अभिनेत्री पायल घोष ने राजभवन का रुख किया है। उनके जाने से बेशक मुंबई पुलिस हरकत में न आये लेकिन एक तरह से मनोवैज्ञानिक दबाव तो बन ही गया है। पायल घोष ने निर्देशक अनुराग कश्यप की गिरफ्तारी की मांग की है। उसका आरोप है कि कश्यप ने उसका यौन उत्पीड़न किया। पुलिस में वह शिकायत दर्ज करा चुकी है लेकिन पुलिस है कि अनुराग कश्यप पर हाथ रखने को तैयार नजर नहीं आ रही है।
वैसे मुंबई पुलिस को स्काटलैंड यार्ड जैसी पेशेवर पुलिस माना जाता है लेकिन तीन पहिये की सरकार ने उसके वजूद पर सवालिया निशान लगा दिया है। लगातार एक के बाद एक घटनाओं ने मुंबई पुलिस की बखिया उधेड़ कर रख दी है। दिशा सालियान की मौत को आत्महत्या बताने में मुबंई पुलिस ने जितनी जल्दी की, उससे ज्यादा जल्दी तो पुलिस के कम्पयूटर से फाइल उड़ाने में की, जबकि परिस्थितियां दिशा सालियान की मौत को रहस्यमय बनाये हुए हैं। ठीक सुनंदा पुष्करा की मौत की तरह। दिशा सालियान का शव निर्वस्त्र पाया गया था। उसका शव जिस स्थिति में मिला वह भी कम संदिग्ध नहीं था।
बहरहाल अनुराग कश्यप की गिरफ्तारी की मांग को लेकर पायल घोष ने राजभवन का दरवाजा खटखटा कर न्याय की गुहार लगाई है। राजयपाल इस मामले में क्या करेंगे, यह चर्चा का विषय भी नहीं है। सरकार राज्यपाल के निर्देश पर कितना अमल करेगी, यह भी महत्वपूर्ण नहीं रह गया है। पायल की अर्जी को राजभवन ने मुंबई पुलिस को भेजना है, भेज भी दी होगी। मुंबई पुलिस क्या रुख अपनाएगी, यह भी साफ है। लेकिन इस सारे प्रकरण में एक बात यह रेखांकित जरूर हुई है कि महिलाओं की अस्मिता तथा उसकी गरिमा की रक्षा के नाम पर देश में जितने एनजीओ काम कर रहे हैं, उनके मुंह में दही सी जमी हुई है। वे न कंगना के मामले में मुखर थी, न दिशा सालियान की अस्वाभाविक मौत पर बोली और न अब पायल के मामले में प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाई हैं। मान लिया जाए पायल का आरोप पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो, कोई और कारण भी हो सकता है लेकिन कम से कम मामले की निष्पक्ष जांच की मांग को करनी ही चाहिए थी। अब न तो पदमश्री लौटाने वाले लोग बोल पा रहे हैं, न मानवाधिकारवादी और न दूसरे लोग। अख्तर जैसे लोग भी मौन साधे हुए हैं मानो उन्हें सांप सूंघ गया हो।
देखना यह है कि पायल की पुकार कहां तक पहुंचती है। वैसे महाराष्ट्र का राजनीतिक घटनाक्रम बड़ी तेजी से घूम रहा है। शायद इसी कारण हर कोई तेल देखो और तेल की धार देखो पर भरोसा कर रहा है लेकिन इंसाफ की जो इल्तिजा है, उसे तो पूरा करना ही होगा और इतिहास हमेशा मुंबई पुलिस से ये सवाल पूछता रहेगा कि क्यों वह हरकत में नहीं आई। यह सवाल सिर्फ मुंबई पुलिस का नहीं है बल्कि कमोबेश देशभर में यही प्रवृत्ति है। उत्तराखंड में भाजपा के एक विधायक यौन शोषण के आरोपी हैं लेकिन पीड़ित महिला की शिकायत पर जांच करने के बजाय पुलिस ने विधायक की पत्नी की ओर से दर्ज ब्लेकमेलिंग के मामले की जांच में ज्यादा तेजी दिखाई। गिनाने लगें तो हर राज्य में इसी तरह की शिकायतें मिल जाएंगी लेकिन यहां तो मुंबई पुलिस की प्रतिष्ठा पर बन आई है और शायद राजनीतिक स्थितियां बदलने के बाद ही इस परिदृश्य में बदलाव दिख पायेगा। फिलहाल तो उम्मीद नहीं दिखती, चाहे किसी भी दर पर दस्तक दे दो। अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या पायल घोष को भी इंसाफ के लिए अदालत की शरण लेनी होगी?