जलवायु परिवर्तन और जनस्वास्थ्य प्रमुख मुद्दों में शामिल होें
उत्तराखंड ड्राफ्ट स्वास्थ्य नीति 2020 और जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना 2014 का विश्लेषण
*एसडीसी फाउंडेशन के अनुसार उत्तराखंड को केरल और सिक्किम जैसे हेल्थ माॅडल की जरूरत*
देहरादून। जलवायु परिवर्तन का उत्तराखंड में लोगों के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, लेकिन राज्य में जलवायु परिवर्तन और जन स्वास्थ्य अब तक प्रमुख मुद्दे नहीं बन पाए हैं। देहरादून स्थित एसडीसी फाउंडेशन ने इस मामले में उत्तराखंड स्वास्थ्य नीति के ड्राफ्ट 2020 और जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना 2014 को आधार बनाकर फैक्टशीट जारी की गई है।
फैक्टशीट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन राज्य में लोगों के स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है। फैक्टशीट में कई जरूरी सुझाव भी दिये गये हैं।
फैक्टशीट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन मलेरिया, डेंगू, दस्त, हैजा, चिकनगुनिया जैसे वेक्टर जनित संक्रमणों के पैटर्न में बदलाव का कारण बन सकता है। इसमें खाद्य चक्रों को बदलने की भी क्षमता है, जिससे भूख और कुपोषण बढ़ने और बच्चों का विकास बाधित होने की संभावना बनी रहती है।
फैक्टशीट में वायु प्रदूषण, वेस्ट मैनेजमेंट, पानी की कमी और भूस्खलन जैसे मुद्दों को उठाया गया है और कहा गया है कि इससे हृदय रोग, सांस संबंधी विकार, और एलर्जी जैसी अनेक बीमारियों की संभावना बढ़ जाएगी। शहरी मलिन बस्तियों को कई तरह के संक्रमण का खतरा होगा।
दूरदराज के क्षेत्रों में अस्पतालों, क्लीनिकों, प्रयोगशालाओं, एम्बुलेंस केंद्रों, संपर्क मार्गों आदि पर इस तरह की घटनाओं का प्रतिकूल असर पड़ता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है।
फैक्टशीट में कहा गया है कि विभिन्न समूहों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव एक जैसे नहीं होते। इससे महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
यदि स्वच्छता और वेस्ट मैनेजमेंट की उचित व्यवस्था न हो तो शहरी मलिन बस्तियों में रहने वाले घातक बीमारियांे के शिकार हो सकते हैं। स्वास्थ्य नीति का ड्राफ्ट इस समुदाय का विशेष रूप से ध्यान में रखने और उनकी जरूरत के अनुसार सुविधाएं देने की बात नहीं करता।
एसडीसी के अनुसार दोनों दस्तावेजों में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के समाधान के लिए कुछ सुझाव दिये गये हैं। इन सुझावों में एयर एम्बुलेंस, महामारी पर निगरानी, संक्रमण की स्थिति निपटने के लिए मजबूत प्रणाली विकसित करने, स्थानीय समुदायों को आदतों में बदलाव के लिए जागरूक करने, कचरा प्रबंधन और पानी का स्थायी प्रबंधन करने जैसे सुझाव शामिल हैं।
स्वास्थ्य निति ड्राफ्ट में राज्य में स्वास्थ्य सेवा के निजीकरण को बढ़ावा देने का भी सुझाव दिया गया है। यह ड्राफ्ट स्वास्थ्य सेवा में पीपीपी मॉडल लागू करने की जरूरत बताता है।
एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं, यह उचित समय है, जब हमें जन स्वास्थ्य पर और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति गंभीर रवैया अपनाना चाहिए। हम इन दोनों चुनौतियों के लिए तैयार नहीं हैं। वे कहते हैं कि आने वाले चुनावों में सभी राजनीतिक दलों को इन मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण साझा करना चाहिए। जन स्वास्थ्य के निजीकरण के मामले में अनूप का मानना है कि हमें केरल और सिक्किम जैसे राज्यों की तरह मजबूत सामुदाय केंद्रित स्वास्थ्य प्रणाली की जरूरत है।
एसडीसी फाउंडेशन के रिसर्च एंड कम्यूनिकेशन हेड ऋषभ श्रीवास्तव कहते हैं कि हमारी पहले से कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती है। हम महिलाओं के अनुभवों की तरफ ध्यान देने में भी विफल रहे है, जबकि महिलाएं जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं। उनके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त करना सबसे कठिन होता है। वे कहते हैं कि हमें इन दोनों मुद्दों को ध्यान में रखकर एक स्मार्ट नीति बनाने की ज़रुरत है।