G-KBRGW2NTQN मसूरी गोलीकांड का खौफनाक मंजर से आज भी रूह कांप उठती है – Devbhoomi Samvad

मसूरी गोलीकांड का खौफनाक मंजर से आज भी रूह कांप उठती है

मसूरी। 2 सितंबर 1994 का दिन उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के इतिहास का काला दिन है जब मसूरी में खटीमा कांड को लेकर मौन जुलूस पर पुलिस ने बर्बरता पूर्वक गोली चला दी व उसमें छह आंदोलनकारी हंसा थनाई, श्रीमती बेलमती चौहान, रायसिंह बंगारी, मदन मोहन मंगाई, बलवीर सिंह नेगी व धनपत सिंह शामिल हैं वहीं पुलिस के डीएसपी उमाकांत त्रिपाठी भी शहीद हो गये थे।
उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन उस समय अपने चरम पर था, शहर गांव, गली, मोहल्ले हर जगह उत्तराखंड राज्य को लेकर आंदोलन किया जा रहा था। धरना प्रदर्शनों का दौर जारी था, स्वतंत्रता संग्राम के बाद शायद ही कोई ऐसा आंदोलन रहा होगा जिसमें हर नागरिक ने अपनी सहभागिता निभाई वहीं यह स्वत:स्फूर्त आंदोलन था जिसमें कोई नेता नहीं था। एक सितंबर 1994 को खटीमा में गोलीकांड की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई और जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे, खटीमा गोलीकांड में मारे गए शहीदों को श्रद्धांजलि स्वरुप शांतिपूर्ण तरीके से मौन प्रदर्शन कर रहे थे। जब मालूम चला कि झूलाघर स्थित उत्तराखंड संघर्ष समिति के हाल पर जहां प्रतिदिन एक दिवसीय अनशन किया जा रहा था व उस दिन बालरेगंज के लोगों का नंबर था लेकिन पुलिस ने रात में ही अनशन पर बैठे आंदोलनकारियों को गिरफतार कर लिया व वहां पीएसी ने अपना कैंप बना दिया जब इस बात की खबर लगी तो लोगों का आक्रोश बढ गया जिस पर शांति पूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोग संघर्ष समिति के कार्यालय के बाहर एकत्र हो गये इस बीच गनहिल की ओर से पत्थरबाजी शुरू हो गई जिसको लेकर लोग अपने को बचाने के लिए संघर्ष समिति के हाल जहां पुलिस ने कब्जा कर लिया था वहां जाने लगे इसबीच पुलिस ने निहत्थे आंदोलनकारियों पर बर्बरता पूर्वक कार्रवाई करते हुए गोली चला दी। जिसमें  मसूरी के 6 लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी। वहीं बीच बचाव करते हुए डीएसपी उमाकांत त्रिपाठी को भी गोली मार दी गई उन्हेंंउपचार के लिए राजकीय सेंटमेरी ले जाया गया जहां उन्होंने दम तोड़ दिया। इस घटना के बाद पुलिस ने कफयरू लगा दिया। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में मातृशक्ति के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
शहीद स्थल पर पुलिस ने आंदोलनकारी महिला हंसा धनाई व बेलमती चौहान के सिर पर गोली मारी जिन्होंने मौके पर ही दम तोड़ दिया। उत्तराखंड राज्य निर्माण को लेकर राज्य आंदोलनकारियों में आक्रोश व्याप्त हो गया था। इस संबंध में शहीद बलवीर सिंह नेगी के भाई राजेंद्र सिंह नेगी बताते हैं कि 30 वर्ष की उम्र में बलवीर सिंह नेगी हमें छोड़कर चला गया जिससे कि पूरा परिवार बिखर गया और आज भी उसकी याद आते ही पूरा परिवार सदमे में आ जाता है। उत्तराखंड राज्य आंदोलन एक ऐसा आंदोलन रहा जिसमें उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार की बर्बरता इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई और आज भी उत्तराखंड के लोग बर्बरता की उस कहानी को भूल नहीं पाए हैं। मसूरी के इतिहास में पहली बार 14 दिन का कर्फ्यू भी लगाया गया था। लेकिन सवाल उठता है कि राज्य बनने के 21 साल बाद व मसूरी गोलीकांड के 27 साल बाद भी राज्य के सपने, सपने बनकर रह गये। आज भी राज्य आंदोलनकारी चिन्हीकरण के लिए आंदोलनरत हैं। राज्य निर्माण के बाद जिस पलायन को रोकने की बात की गई थी आज वह दुगना हो गया, पहाड़ के गांव लगातार खाली हो रहे हैं व राज्य में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। अब तो लोग यह करने से नहीं कतराते कि उत्तर प्रदेश में ही ठीक था।

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