किसानों ने जाना मल्चिंग पद्धति के बारे में
बागेश्वर। किसानों की आय दोगनुी करने के लिए उद्यान विभाग पहली बार तहसील में मल्चिंग पद्धति अपना रहा है। इस विधि से 85 प्रतिशत तक पानी की बचत होगी। साथ ही किसानों को खर-परवार जैसी परेशानी से नहीं जूझना पड़ेगा। टमाटर आदि सब्जी कम सड़ेगी। विभाग किसानों को सब्सिडी में उपकरण आदि भी उपलब्ध करा रहा है।
उद्यान सचल दल केंद्र कांडा की पहल पर कांडा कमस्यार क्षेत्र में सब्जी उत्पादन के लिए मल्चिंग पद्धति का प्रयोग कर आधुनिक खेती की ओर काश्तकारों को विभाग आगे बढ़ा रहा है। उद्यान सहायक देवेंद्र रावत ने बताया कि कांडा के प्रगतिशील काश्तकार सतीश पांडेय के यहां पर मल्चिंग पद्धति की शुरुआत कर रहे हैं। यहां पर गोभी की पौध लगा रहे हैं, इसमें टमाटर, बैगन, आलू , शिमला मिर्च, मूली जैसी हर तरह की फसल बेहतर तरीके से पैदा की जा सकती हैं। इसके बाद कमस्यारघाटी रावतसेरा के काश्तकारों को भी इससे जोड़ा जाएगा। इसका प्रयोग कर कम मेहनत में काश्तकार अपनी आर्थिकी मजबूत कर सकते हैं। इस विधि से पाले की मार से भी किसान बच सकते हैं। सिंचाई के लिए बने होल के कारण 85 प्रतिशत तक पानी की बचत होगी। खर-पतवार की समस्या दूर होगी। इसके अलावा सब्जी सड़ेगी तथा गलेगी नहीं। विभाग सब्सिडी में मल्चिंग पेपर के साथ तकनकी जानकारी मुफ्त में दे रहा है।
मल्चिंग एक मृदा और जल संरक्षण और खरपतवार प्रबंधन अभ्यास है जो मृदा सौरकरण के माध्यम से भी होता है जिसमें किसी भी उपयुक्त सामग्री का उपयोग फसलों की पंक्तियों के बीच या पेड़ के तने के आसपास जमीन पर फैलाने के लिए किया जाता है। .यह अभ्यास मिट्टी की नमी को बनाए रखने में मदद करता है, खरपतवार की वृद्धि को रोकता है और मिट्टी की संरचना को बढ़ाता है।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’
बागेश्वर, उत्तराखंड