G-KBRGW2NTQN अब मासिक नहीं प्रतिदिन के आधार पर फिक्स चार्ज वसूलेगा यूपीसीएल – Devbhoomi Samvad

अब मासिक नहीं प्रतिदिन के आधार पर फिक्स चार्ज वसूलेगा यूपीसीएल

प्रदेश के 20 लाख विद्युत उपभोक्ताओं को मिलेगा सीधा लाभ 
पौड़ी।  फिक्स चार्ज के नाम पर अब तक उपभोक्ताओं की जेब ढ़ीली कर रहे यूपीसीएल ने अब मासिक के स्थान पर दैनिक उपयोग के आधार पर मासिक चार्ज वसूलने की व्यवस्था लागू कर दी है। इस मामले में सतपुली निवासी पत्रकार चैन सिंह रावत लंबे समय से यूपीसीएल के खिलाफ मुहीम चलाए हुए थे। अब उनकी मुहीम रंग लाई है जिसके बाद विद्युत उपभोक्ताओं के बिलों में अब 8 फीसदी तक की कमी आने की संभावना बन गई है।
नये फामरूले से अनेकों उपभोक्ताओं को फिक्स चाज्रेस और एनर्जी चाज्रेस से हो रहे नुकसान और अनियमितता से छुटकारा मिल गया है। अब घरेलू उपभोक्ताओं को विद्युत खपत और दिनों के अनुसार ही मूल्य देना होगा। आदेश में द्विमासिक बिलिंग 55 से 65 तथा मासिक बिलिंग 25 से 35 दिन के भीतर किए जाने के निर्देश दिए गए हैं। जिससे उपभोक्ता उच्च उपभोग वाले स्लैब में न जा सकें। इस विषय को पिछले चार वर्षो से समाधान पोर्टल, सीएम पोर्टल और पीएमओ  समेत कई मंचों पर उठा चुके सतपुली के सामाजिक कार्यकर्ता चैन सिंह रावत ने सभी जगह से निराशा हाथ लगने पर नवंबर 2021 में उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग का दरवाजा खटखटाया था। जिस पर विद्युत नियामक आयोग के चाबुक के बाद यूपीसीएल ने नया फामरूला लागू किया है। इस मामले को केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने भी विधानसभा में उठाया था।
यूपीसीएल के मुख्य अभियंता (वाणिज्य) जीएस कुंवर ने फरवरी से प्रतिदिन के आधार पर बिलिंग करने के आदेश जारी कर दिए हैं। यूपी के समय से ही घरेलू बिलिंग का त्रुटिपूर्ण फामरूला होने से अनेकों बार कम यूनिट खपत करने वाले उपभोक्ताओं को अधिक यूनिट खपत करने वाले उपभोक्ताओं से अधिक मूल्य चुकाना पड़ रहा था। जैसे पूर्व में कई मौकों पर 44 दिन में 325 यूनिट खपत करने वाले उपभोक्ता को 46 दिन में 351 यूनिट खपत करने वाले उपभोक्ताओं से 160 रुपए तक अधिक मूल्य चुकाना पड़ता था। वहीं 16 या 46 दिन में बिलिंग होने पर एक या दो माह का पूरा फिक्स चार्ज देना पड़ता था। जिससे ऐसे उपभोक्ताओं को सालभर में 12 माह से अधिक का फिक्स चार्ज भी देना पड़ रहा था। अब तक के फामरूले के अनुसार 16 से 45 दिनों के भीतर घरेलू बिलिंग होने पर एक माह और 75वें दिन तक दो माह के चक्र में बिलिंग होती थी। ऐसे उपभोक्ताओं की बिलिंग उच्च उपभोग वाले स्लैब में हो जाती थी, जिससे उन्हें 10 से 15 फीसदी तक अतिरिक्त मूल्य चुकाना पड़ता था।

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