भरत भगवान की 108परिक्रमा करने से मिलता बदरीनाथ धाम के दर्शन का फल
ऋषिकेश। देवभूमि उत्तराखंड में कण-कण में देवी-देवताओं का वास माना जाता है। यहां की धार्मिक परंपराएं और मंदिर-मठों की पौराणिक मान्यताएं इस बात को और भी पुख्ता कर देती हैं। उत्तराखंड में प्रसिद्ध चार धाम, बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमनोत्री के दर्शनों का प्राचीन काल से महत्व रहा है। मगर, देवभूमि में कई मंदिर ऐसे भी हैं, जिनके दर्शन इन तीथोर्ं के दर्शन से कम नहीं हैं। तीर्थनगरी ऋषिकेश में भी प्रचीन श्री भरत मंदिर भी इसी पौराणिक मान्यता से जुड़ा है। यहां अक्षय तृतीय पर्व पर हृषिकेश नारायण भगवान भरत की 108 परिक्रमा करने पर बदरीनाथ धाम के दर्शन का फल प्राप्त होता है।
पौराणिक धर्मग्रंथों के उल्लेख तथा विद्वानों की मान्यता बताती है कि हृषिकेश नारायण श्री भरत मंदिर सतयुग में स्थापित मंदिर है। विभिन्न पुराणों तथा धर्म ग्रंथों में भी यह उल्लेख है कि स्वर्गारोहण के लिए हिमालय जाते समय पांडवों ने तथा बद्रीकाश्रम जाते समय भक्त प्रह्लाद ने श्री भरत मंदिर में पूजा अर्चना की थी। स्कंद पुराण, केदारखंड, वामनपुराण, नरसह पुराण, श्रीमद् भागवत गीता तथा महाभारत आदि ग्रंथों में इसका स्पष्ट उल्लेख है। भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम स्तोत्र में हृषिकेश नारायण श्री भरत भगवान का वर्णन कुछ इस तरह है। शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने बदरीकाश्रम जाते समय श्री भरत मंदिर में भगवान नारायण की मूर्ति को पुर्नस्थापित किया था।
श्री भरत मंदिर में स्थापित हृषिकेश नरायाण भगवान भरत की चतुभरुज मूर्ति काली शालिग्राम शिला से निर्मित है। जबकि भगवान बदरीनाथ तथा तिरूपति बालाजी की मूर्ति भी ऐसी ही काली शालिग्राम शिला से निर्मित है। प्राचीन ग्रंथों में यह भी वर्णित है कि अक्षय तृतीय को भगवान श्री हृषिकेश नारायण की सामघ्र्थ्य अनुसार 108 अथवा 1008 परिक्रमा करने पर साधक को श्री बदरीनाथ के दर्शनों का फल प्राप्त होता है। अक्षय तृतीय पर्व श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से ठीक पहले पड़ता है और इसी दिन पर प्रसिद्ध धाम गंगोत्री व यमनुनोत्री के कपाट भी खुलते हैं। इस लिए युगों से इस महात्म्य के साथ हजारों लोग अक्षय तृतीय पर भगवन हृषिकेश नारायण की परिक्रमा कर पुण्य लाभ अर्जित कर रहे हैं।