बैटरी से चलने वाली बसों का घाटा हो सकता है 100 करोड़ के पार
2 years ago newsadminदेहरादून। स्मार्ट सिटी के नाम पर शहर में चलने वाली बैटरी चालित बसों का किराया आने वाले समय में 100 करोड़ रुपए से ऊ पर पहुंच सकता है। वर्तमान में यह घाटा सवा तीन करोड़ से लेकर चार करोड रुपए तक है। यह स्थिति तब है जब बसों की संख्या कम है। आने वाले समय में बसों की संख्या में वृद्धि होगी, जिससे घाटा 100 करोड़ के पार जा सकता है। इस बात की जानकारी सिटी बस यूनियन के अध्यक्ष विजय वर्धन डंडरियाल ने सूचना अधिकार के तहत हासिल जानकारी के अध्यन के बाद कही।
उन्होंने कहा कि सरकार ने नियमों को ताक पर रखकर जहां बसों का संचालन किया है वहीं इसे कई तरफ नुकसान हो रहा है। सबसे पहला नुकसान सरकार को हो रहा है जो चार करोड़ के करीब है और आने वाले समय में 100 करोड़ को पार कर जाएगा। दूसरी तरफ सिटी बसों को आर्थिक नुकसान हो रहा है जिससे उनका रोड पर संचालन करना नुकसानदायक सौदा साबित होगा। आने वाले समय में सिटी बस संचालकों को अपनी बसों को बंद करना होगा। सिटी यूनियन के अध्यक्ष विजय वर्धन डंडरियाल ने कहा कि सरकार विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं को पूरा करने के लिए बजट न होने का रोना रोती रहती है। ऐसी स्थिति में इस तरह का घाटा कहीं से भी तर्कसंगत नहीं है। सरकार निजी कंपनी के नुकसान की भरपाई अपने पैसे से कर रही है।
डंडरियाल ने स्मार्ट सिटी लिमिटेड से देहरादून में संचालित इलेक्ट्रिक बसों की आय व्यय की सूचना मांगी थी। 5 मई 2022 तक इलेक्ट्रिक बसों की संख्या 10 थी। 10 बसों में 5 बसों का संचालन 21 फरवरी 2021 को हुआ और उसके पश्चात 5 बसों का संचालन 4 माह बाद जून 2021 को हुआ। फरवरी 2021 से 30 जून 2022 तक स्मार्ट सिटी लिमिटेड को यात्री किराए से आय 1,69 ,65,754 (एक करोड़ उन्तर लाख पैसेट हजार सात सौ चव्वन रुपये)। ट्रांस कंपनी लिमिटेड को किलोमीटर के तहत धनराशि दी गई 5,06,02,459 रुपये ( पाँच करोड़ छ लाख दो हजार चार सौ उनसठ रुपये)। इस प्रकार यात्री किराए में नुकसान हुआ 3,37,36,705 रुपये। इलेक्ट्रिक बस में उत्तराखंड परिवहन निगम के परिचालकों को देय धनराशि 63,46,448 रुपए दी गई।
कुल मिलाकर ने यह हानि 4,00,83, 153 रुपये का है। 10 वर्ष के अनुबंध पर 30 बसों में यह घाटा अनुमानित 100 करोड़ से ऊ पर चला जाएगा। डंडरियाल ने कहा कि सरकार द्वारा सिटी बसों को समाप्त करने की साजिश चल रही है। क्योंकि शुरुआत में इलेक्ट्रिक बसों का ट्रायल देहरादून से मसूरी और हल्द्वानी से नैनीताल पर हुआ था और अब इलेक्ट्रिक बसे देहरादून में चलाई जा रही है और किराया भी सिटी बसों के बराबर है। यहां तो सरकार मूल निवासीयों का रोजगार छीन रही है और बाहरी कंपनी को संरक्षण दे रही है। जब सरकार घाटा ही सहन कर रही है तो इलेक्ट्रिक बसों को देहरादून से मसूरी, हरिद्वार, ऋषिकेश चलाया जाए, जिससे सरकार का घाटा भी कम होगा और सिटी बसों के वाहन स्वामियों का रोजगार छिन्नने से भी बचाया जा सकेगा।