परीक्षा कराने वाली कंपनी को आयोग ने दिया कारण बताओ नोटिस
आरएमएस टेक्नोसोल्यूशन प्रा. लि. के सीईओ को लिखा पत्र
एक सप्ताह के भीतर जवाब न आया तो ब्लैक लिस्ट होगी कंपनी
देहरादून। कई भर्तियों में पेपर लीक होने के बाद अपने दागदार हो चुके दामन को साफ करने के लिए अब अधीनस्थ सेवा चयन आयोग छटपटा रहा है। आयोग ने अब परीक्षा कराने वाली कंपनी को कारण बताओ नोटिस दिया है। आयोग ने यह भी चेतावनी दी है कि कंपनी को ब्लैक लिस्ट करने की कार्रवाई भी की जा सकती है।
आयोग के नवनियुक्त सचिव सुरेन्द्र सिंह रावत ने लखनऊ स्थित आरएमएस टेक्नोसोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड को यह नोटिस भेजा है। नोटिस मे कहा गया है कि आपकी कम्पनी आरएमएस टैक्नोसोल्यूशन द्वारा उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की विभिन्न पदों के लिए आयोजित की जाने वाली लिखित परीक्षाओं का संचालन किया गया है। आयोग द्वारा इस संस्थान के माध्यम से 4 व 5 दिसम्बर 2021 को करायी गयी स्नातक स्तरीय परीक्षा एवं 26 सितम्बर 2021 को आयोजित करायी गयी सचिवालय रक्षक भर्ती परीक्षा के प्रश्न पत्र लीक किये जाने के संबंध में स्पेशल टास्क फोर्स, द्वारा जांच की जा रही है। स्पेशल टास्क फोर्स की जांच में इन परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक किये जाने के संबंध में प्रथमदृष्टया परीक्षा कराने वाले संस्थान की संलिप्तता परिलक्षित हुई है जो एक गम्भीर अपराध की श्रेणी में आता है।
नोटिस में लिखा है कि स्नातक स्तरीय परीक्षा में हुई गड़बड़ी के संबंध में पंजीकृत मुकदमे की विवेचना के दौरान गिरफ्तार अभियुक्तों में से दो अपराधी (जयजीत दास एवं अभिषेक वर्मा) परीक्षा कराने वाली इसी कम्पनी के कर्मचारी है। इसका सीधा मतलब है कि परीक्षा के पेपर लीक करवाने में कम्पनी के कर्मचारियों की संलिप्तता पायी गयी है। आपराधिक एवं कदाचारयुक्त कृत्य से आयोग की छवि धूमिल होने के साथ ही उक्त परीक्षाओं की संवेदनशीलता एवं शुचिता बाधित हुई है। आयोग की ओर से कहा गया है कि उपरोक्त आपराधिक एवं कदाचारयुक्त कृत्य के लि, क्यों न इस संस्थान के विरूद्ध नियमानुसार कानूनी कार्यवाही अमल में लाते हुए फर्म को काली सूची में डाल दिया जाय। कंपनी से इस सम्बन्ध में सम्पूर्ण वस्तुस्थिति तथ्यों सहित कारण बताते हुये अपना पक्ष आयोग के समक्ष इस पत्र के निर्गत होने की तिथि से एक सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करने को कहा गया है। उक्त अवधि के भीतर यदि आपके संस्थान का कोई उत्तर आयोग में प्राप्त नहीं होता है तो यह मान लिया जाएगा कि संस्थान को इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहना है और तदोपरान्त आयोग द्वारा नियमानुसार निर्णय ले लिया जाएगा।