कुंजवाल की 150 व प्रेमचंद अग्रवाल की 78 नियुक्तियों पर गाज
नई दिल्ली/देहरादून। सरकारी सेवा से हटाये गये विधानसभा बैकडोर भर्ती के 228 तदर्थ कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिल पायी। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट की डबल बेंच के फैसले को बरकरार रखते हुए तदर्थ कर्मियों की याचिका को खारिज कर दिया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार नौकरी से हटाये गये कर्मचारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विमल पटवालिया ने याचिका प्रस्तुत की, जिसे न्यायाधीश संजीव खन्ना व न्यायाधीश सुंदरेश ने महज 2 मिनट के भीतर खारिज कर दिया। यही नहीं अधिवक्ता की ओर से 2016 से पहले की गई नियुक्तियों का मसला उठाने पर न्यायाधीश ने बेहद कड़े शब्दों का प्रयोग किया। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तदर्थ कर्मचारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी को भी पैरवी करनी थी, लेकिन वो कोर्ट पहुंच नहीं पाए। विधानसभा सचिवालय की ओर से अमित तिवारी ने इस मामले में विधानसभा सचिवालय का पक्ष रखा। सुप्रीम कोर्ट के आज के इस फैसले के बाद 228 तदर्थ कर्मियों को गहरा झटका लगा है। इस मामले में सालिस्टर जनरल तुषार मेहता ने कई पहलुओं पर राय दी।
उल्लेखनीय है कि गत 24 नवंबर को नैनीताल हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी द्वारा 228 तदर्थ कर्मियों को हटाने के फैसले को सही ठहराते सिंगल बेंच कार्मिकों को दिए गए स्टे खारिज कर दिया था। इसके बाद ये कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट की शरण में गये थे, लेकिन उन्हें वहां भी राहत नहीं मिल पायी। हालांकि इस बात की संभावना पहले से ही व्यक्त की जा रही थी कि सुप्रीम कोर्ट डबल बेंच के फैसले को बरकरार रख सकता है। इन 228 तदर्थ कर्मियों की नियुक्ति 2016 से 2021 के बीच हुई थी। दो पूर्व विस अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल व प्रेम चंद अग्रवाल के कार्यकाल में हुई इन बैकडोर नियुक्तियों को अवैध रूप से की गयी भर्तियां बताया गया था।2016 में कुंजवाल ने जहां अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ ही भाजपा, कांग्रेस समेत बहुत सारे अन्य लोगों को नियमों के विपरीत विधानसभा में नियुक्त करवा दिया था वहीं भाजपा की पिछली सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे वर्तमान काबीना मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने भी ऐसी ही बैकडोर भर्तियां कर दी थी। अग्रवाल के कार्यकाल की भर्तियों को लेकर एक यह भी सामने आयी कि उन्होंने बाद में वित्त मंत्री बनने के बाद इन नियुक्तियों को वित्तीय स्वीकृति दी। अग्रवाल द्वारा बैकडोर से की गयी इन भर्तियों को लेकर पहले ही विवाद शुरू हो गया था। तबके सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जरूरत होने पर भर्तियां आयोग से कराने को लिखा था, लेकिन बाद में अग्रवाल ने इन भर्तियों को बैकडोर से करा लिया था।