भारत की पत्रकारिता टीआरपी प्रेरित नहीं बल्कि मानवतावादी मूल्यों पर आधारित होः स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने सभी पत्रकार बन्धुओं को ’हिन्दी पत्रकारिता दिवस’ पर शुभकामनायें देते हुये कहा कि 21 वीं सदी में सोशल मीडिया और अन्य आधुनिक सूचना तकनीकी उपलब्ध है फिर भी हिन्दी पत्रकारिता की अपनी प्रासंगिकता है। उन्होने पत्रकार बन्धुओं से कहा कि भारत जैसे बड़े और मजबूत लोकतंत्र को और अधिक मजबूत बनायें रखने के लिये स्वच्छ, निर्भिक और निर्विकार पत्रकारिता की जरूरत है।
स्वामी जी ने कहा कि कोरोना संकट के समय पत्रकार जगत के सभी वाॅरियर्स ने अपनी लेेखनी से देश के दर्द को, गरीब और मजदूरों की वेदना को, कोरोना वाॅरियर्स के साहस को, कोरोना के प्रति जागरूकता को और अद्भुत ढंग से जनता के सामने रखा और आज भी अपनी और अपने परिवार की परवाह न करते हुये कार्य कर रहे है वास्तव में यह निर्भिक और निडर पत्रकारिता का उत्कृष्ट उदाहरण है। स्वामी जी ने कहा कि मैं अपने सभी पत्रकार बन्धुओं से निवेदन करना चाहता हूँ कि आपकी कलम और शब्दों में अपार क्षमता होती है। देशवासी उस पर विश्वास करते है अतः हमारे लेखों, तथ्यों और आंकड़ों में प्रामाणिकता और प्रासंगिकता अवश्य होनी चाहिये। दूसरी बात, आज पूरे विश्व को ’पीस पत्रकारिता’ की जरूरत है, जो आवाज, तथ्य और लेखनी हमें पीसेज में विभक्त करें वह अभिनन्दनीय नहीं है।
स्वामी जी ने कहा कि पत्रकारिता में नैतिक सिद्धान्तों, बौद्धिक संपदा, ज्ञान, कौशल, एथ्क्सि और विशिष्ट मानकों का होना नितांत आवश्यक है। पत्रकारिता में कारोबारी नहीं बल्कि जिम्मेदारी हो, पत्रकारिता में निष्पक्षता हो, सिद्धान्तों के प्रति तटस्थता हो तथा तथ्यों के प्रस्तुतीकरण में प्रामाणिकता हो। आज देश को परदर्शी पत्रकारिता की जरूरत है जो कि तथ्यों को विषलेषण व्यक्तिगत और व्यक्तिविशेष के लिये नहीं बल्कि देश व समाज के हित और सुरक्षा के लिये करे। स्वामी जी ने कहा कि भारत की पत्रकारिता टीआरपी प्रेरित नहीं बल्कि मानवतावादी मूल्यों पर आधारित हो। हिन्दी भाषा में ’उदन्त मार्तण्ड’ नामक पहला समाचार पत्र 30 मई 1826 में निकाला गया था इसलिये इस दिन को हिन्दी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।