भुलाया नहीं जा सकता बाबा मोहन उत्तराखंडी के त्याग और बलिदान कोः उक्रांद
देहरादून। उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन के अग्रणीय, पृथक राज्य उत्तराखंड के लिये लंबे समय तक अनशन करने वाले बाबा मोहन उत्तराखंडी की 16वीं पुण्यतिथि पर उक्रांद ने कचहरी रोड़ स्थित पार्टी कार्यालय में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया।
बाबा मोहन उत्तराखंडी को श्रद्धांजलि देते हुई सुनील ध्यानी ने उनके जीवन संघर्षों पर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि बाबा मोहन ने सर्व प्रथम 11 जनवरी 1997 में देविधार लेन्सडाॅन पौडी गढ़वाल में पृथक उत्तराखंड राज्य के लिये भूख हड़ताल की। इसके बाद राज्य की मांग व राज्य की राजधानी गैरसैंण के लिये भूख हड़ताल का सिलसिला जारी रहा। सबसे बड़ी भूख हड़ताल पृथक उत्तराखंड राज्य के लिये 38 दिन की बाबा मोहन उत्तराखंडी ने की।
पृथक उत्तराखंड राज्य का योद्धा जो लगातार संघर्ष और आंदोलनों का प्रखर व्यक्ति रहा। जिनके संघर्षों को कभी नही भुलाता नही जा सकता। आज के नवयुवकों को उनके जीवन संघर्षों से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बाबा मोहन उत्तराखंडी की अंतिम भूख हड़ताल राज्य की स्थायी राजधानी गैरसैंण बनाने के लिये 2 अगस्त 2004 को वेनिताल आदि बद्री चमोली में शुरू की तथा इस अनशन के दौरान 8 अगस्त 2004 को अंतिम सांस ली। इस अवसर पर लताफत हुसैन, जय प्रकाश उपाध्याय, प्रताप कुँवर, ध्र्मेंद्र कठैत, राजेन्द्र बिष्ट, विजय बौड़ाई, अशोक नेगी, राजेन्द्र गवती डबराल, दुरेन्द्र रावत, नवीन भदूला आदि थे।