उत्तराखंड के लोगों को अपनी संस्कृति से जोड़ती है इगास बग्वाल
देहरादून। उत्तराखंड में हर त्योहरों को अनूठे ढंग से मनाने की परंपरा है। इनमें पहाड़ में मनाई जाने वाली इगास बग्वाल सदियों से पहाड़ के लोगों को अपनी संस्कृति से जोड़ती है। पहाड़ में इगास बग्वाल के दिन भैलो खेलने की वर्षो पुरानी रिवाज को खुशियों से मनाकर उत्तराखंड की परंपरा को जीवंत करता है। इस परंपरा को जीवित रखने और युवा पीढ़ी को इससे जोड़ने के लिए विभिन्न संगठनों द्वारा शहरों में भी बग्वाल इकास मनाती है, ताकि परंपरा को जीवित रखा जा सके।
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है। पहाड़ में इसे बग्वाल कहा जाता है। दीपावली के 11 दिन बाद पहाड़ में इगास-बग्वाल मनाने की परंपरा है। यह कार्तिक मास की शुक्ल की एकादशी को मनाया जाता है। उत्तराखंड में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से ही दीपावली पर्व शुरू हो जाता है, जो कि कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। मान्यता है कि अमावस्या के दिन लक्ष्मी जागृत होती हैं, इसलिए बग्वाल पर लक्ष्मी पूजन किया जाता है। जबकि इगास पर्व पर श्रीहरि शयनावस्था से जागृत होते हैं। इसलिए, इस दिन विष्णु की पूजा का विधान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने पर लोगों ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीये जलाकर स्वागत किया था। लेकिन, गढ़वाल में राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली। इसीलिए इस दिन को ग्रामीणों ने दीपावली का उत्सव मनाया जाता है। मान्यता यह भी है कि गढ़वाल राज्य के सेनापति वीर भड़ माधों सिंह भंडारी जब दीपावली पर्व पर लड़ाई से वापस नहीं लौटे तो जनता इससे काफी दुखी हुई और उसने उत्सव नहीं मनाया। इसके ठीक ग्यारह दिन बाद एकादशी को वह लड़ाई से लौटे तो उनके लौटने की खुशी में दीपावली मनायी गयी। जिसे इगास पर्व के नाम से जाना जाता है। इस दिन गोवंश का भी पूजन किया जाता है। इगास को घरों में पूड़ी, पकोड़ी आदि पकवान बनाए जाते हैं। पहाड़ में बग्वाल व इगास पर भैलो खेला जाता है। इगास में भैलों मुख्य आकषर्ण रहता है। सभी लोग भैलो खेलकर खुशियां बांटते हैं। भैलो में पेड़ों की छाल को एक रस्सी से बांधा जाता है। रस्सी के दोनों कोनों में आग लगाते है और फिर रस्सी को घुमाते हुए भैलो खेलते हैं। उत्तराखंड में इगास-बग्वाल के दिन भैलों खेलने का रिवाज है। इसका सभी को इंतजार रहता है। इगास बग्वाल को लेकर गांवों में तैयारी की जाती है। गांवों में इगास बग्वाल को बग्वाल (दीपावली) की तरह मनाया जाता है, शहरों में भीइगास-बग्वाल कार्यक्रम आयोजित कर पहाड़ की परंपरा व संस्कृति को बचाए रखने के सामूहिक प्रयास किए जाते हैं।