किसान आंदोलन की राह पर नंदप्रयाग – घाट मार्ग का मामला
सीएम की घोषणा के बावजूद आंदोलनकारी पीछे हटने को तैयार नहीं
घाट में क्रमिक अनशन जारी, पदयात्रा साकनीधार पहुंची
16 को सीएम से मिलेंगे पदयात्री
दिनेश सेमवाल शास्त्री
नंदप्रयाग – घाट मोटर मार्ग का मुद्दा कहीं किसान आंदोलन की तरह न हो जाए, यह अंदेशा आंदोलनकारियों के तेवरों को देख कर हो रहा है। उन्हें न सरकार के वादे पर भरोसा है, न अफसरों की नीयत पर। नतीजा यह है की गुरुवार को मुख्यमंत्री द्वारा घाट प्रखंड के लोगों की लंबित मांग पूरी करने की घोषणा के बावजूद आंदोलन थमा नहीं है। घाट प्रखंड के 70 गांवों के लोग आंदोलन की राह से हटने के लिए तैयार नहीं हैं। जब गुरुवार को सीएम तीरथ सिंह रावत ने इस लंबित मामले का निस्तारण करते हुए संबंधित अधिकारियों को तदनुसार कार्यवाही करने के निर्देश दिए तो इसके विपरीत घाट में एक ओर लोगों का क्रमिक अनशन जारी था, वहीं घाट से शुरू हुई करीब दो दर्जन लोगों की पदयात्रा देवप्रयाग से आगे बढ़ चुकी है। पदयात्री इस बात पर अड़े हैं कि 16 अप्रैल को सीएम से मुलाकात के बाद ही आंदोलन के बारे में अगला निर्णय लिया जाएगा।
पदयात्रा का नेतृत्व करने वालों में से एक घाट व्यापार मंडल के अध्यक्ष चरण सिंह नेगी का दो टूक कहना है कि सीएम की आज की घोषणा पर उन्हें कतई भरोसा नहीं है, क्योंकि घोषणा पहले भी हो चुकी है, डिफेक्ट कटिंग के टेंडर भी हो चुके हैं, लेकिन यह उन्हें मंजूर नहीं है। उनका कहना था कि पिछली बार सीएम से जब मुलाकात हुई थी, तब भी उन्होंने भरोसा दिया था लेकिन बाद में कहा गया कि सचिव सुधांशु तकनीकी दिक्कत बता रहे हैं, इस कारण सड़क डेढ़ लेन की नही हो सकती। श्री नेगी के मुताबिक राज्य में सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन हुआ है, नेता वही हैं, अफसर वही हैं जो लोगों की जायज मांग में पेंच फंसा रहे हैं।
इस तरह यह मामला भी कमोबेश दिल्ली के किसान आंदोलन की तरह ही लग रहा है।
बकौल चरण सिंह जब तक स्पष्ट शासनादेश जारी नहीं होता तब तक आंदोलन जारी रहेगा, लोग अब ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते।
दूरभाष पर बातचीत के दौरान चरण सिंह नेगी का कहना था कि हमें टाइम बाउंड शासनादेश चाहिए। यह नहीं होगा कि सिर्फ घोषणा हो, 2022 के चुनाव का इंतजार हम नही कर सकते। उनको आशंका है कि सरकार की मंशा चुनाव तक मामले को लटकाने की है। बस यही अविश्वास मामले की राह में बाधा दिख रहा है।
चरण सिंह नेगी का कहना था कि भराड़ीसैंन में उनकी टोपी सरकार द्वारा उतार ली गई है, जुटे इस पदयात्रा ने छीन लिए हैं, बस बदन पर कपड़े रह गए हैं, सरकार उन्हें भी उतरना चाहती है तो हम क्या कर सकते हैं, मतलब यह कि तेवर ठीक किसान नेताओं जैसे ही हैं।
इस मामले का एक और पहलू भी है, आज सरकार की ओर से जो घोषणा की गई है, उसमें नंदप्रयाग से घाट ब्लॉक तक डेढ़ लेन सड़क की बात कही गई है, चरणसिंह नेगी कहते हैं कि यदि घाट बाजार होकर ब्लॉक कार्यालय तक डेढ़ लेन सड़क बनती है तो घाट का 70 प्रतिशत बाजार ध्वस्त हो जायेगा। यानी वे डेढ़ लेन की सड़क तो चाहते हैं लेकिन बाजार में संभावित तोड़फोड़ स्वीकार्य नहीं है। मतलब चित और पट के साथ अंटा भी चाहिए। लगभग यह किसान आंदोलन का ही छोटा संस्करण प्रतीत हो रहा है। बहरहाल सरकार के सामने यह मामला जटिल होता जा रहा है, जरूरत इस बात की है की सर्व स्वीकार्य समाधान की दिशा में सरकार आगे बढ़े। इसके लिए अफसरों से ज्यादा संवेदनशीलता बरतने की जरूरत है, हर बात में तकनीकी पेंच फंसाने की प्रवृति छोड़नी होगी, आखिर सरकार जनता के लिए ही होती है, अगर 1962 से कोई सड़क चौड़ी नहीं हो पाई तो इसके लिए पहली नजर में अफसर ही दोषी हैं, जिन्होंने जनप्रतिनिधियों के सुझावों को तकनीकी दिक्कत बता कर टालने की प्रवृत्ति अपनाई और यह सिलसिला 58 साल से बदस्तूर जारी है। जो भी हो मामले का जल्द समाधान होना ही चाहिए।