सल्ट में दांव पर बहुत कुछ
महेश और गंगा का भाग्य आज होगा ईवीएम में बंद
देहरादून : सल्ट विधानसभा सीट के लिए हो रहा उपचुनाव कई मायनों में प्रदेश की राजनीति की नई इबारत लिख रहा है। चुनाव प्रचार के आखिरी दिन जिस तरह भावुकता का प्रदर्शन हुआ उससे चुनाव का मर्म समझा जा सकता है, जब आपके तरकश के तीर खत्म हो जाते हैं, तब यही एकमात्र साधन रह जाता है।
यह चुनाव मूलत: पूर्व सीएम हरीश रावत के लिए नाक का सवाल बन गया है। नाक का सवाल तो बीजेपी के लिए भी है, लेकिन उससे ज्यादा हरदा की प्रतिष्ठा दांव पर है। तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद हरदा गंगा पंचोली को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। सल्ट के महारथी रणजीत रावत के बेटे के नाम की कई नेताओं ने सिफारिश की थी। हाई कमान से खतो किताबत हुई थी लेकिन हाई कमान ने सबको दरकिनार कर हरदा की बात की तबज्जो दी। वैसे तो पार्टी का एक खेमा हरदा से ही मैदान में उतरने का आग्रह कर रहा था। तब यह भी माना जा रहा था कि शायद सीएम तीरथ सिंह रावत इस रिक्त सीट से मैदान में उतरें। इसे हरदा ने यह कह कर खारिज कर दिया था कि यह राज्य हित में नहीं होगा। यानी राज्यहित में उन्हें गंगा ही दिख रही थी और वे आखिरकार मैदान में उतार ही लाए।
जाहिर है कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग चुनावी रण में पार्टी के साथ नहीं है। हालांकि प्रचार के आखिरी दिन प्रदेश प्रभारी से लेकर जिले तक के तमाम नेताओं ने सल्ट में हाजिरी दिखाई लेकिन पार्टी की यह एकता तभी तक होती है, जब तक प्रदेश प्रभारी मौजूद रहते हैं। कांग्रेस की यही एक विडंबना है। बहरहाल हरदा ने पूरी शिद्दत से गंगा के लिए मार्मिक अपील की। उनके रूंधे कंठ से साफ लगा कि यह उनके अस्तित्व का सवाल है। सल्ट के लोग उनकी बात को कितना महत्व देते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा और यही 2022 के विधानसभा चुनाव की आधार शिला भी होगा।
दूसरी ओर बीजेपी भी कम सक्रिय नहीं है। उसके पास कार्यकर्ताओं का समर्पण, रायबहादुर सोबन सिंह जीना की विरासत, सुरेंद्र सिंह जीना की सहानुभूति और उनके कार्य और खुद सीएम तीरथ सिंह रावत का आखिरी दिन स्याल्दे और अन्य जगहों पर लोगों से महेश जीना के लिए वोट मांगे उससे मुकाबला बराबरी का सा लग रहा है। चुनाव मैदान में एक अंतर जो साफ दिखा, वह यह था कि बीजेपी की तुलना में कांग्रेस संगठित नजर नहीं आई। यही दोनों दलों के बीच मूलभूत अंतर है। इस अंतर का खुलासा कल हो जायेगा। देखना यह होगा कि हरदा की अपील पर सल्ट के लोग कितना कान और ध्यान देते हैं। महेश और गंगा में से चुनाव तो एक का ही होना है, यह अलग बात है कि आध्यात्मिक तौर पर गंगा और महेश एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं। इस दृष्टि से यह चुनाव काफी रोचक हो गया है। इसके परिणाम पर सबकी नजर रहेगी क्योंकि 2022 का आधार यही बनने जा रहा है।
दिनेश शास्त्री