G-KBRGW2NTQN सल्ट उपचुनाव : एक फैसले के कई संदेश – Devbhoomi Samvad

सल्ट उपचुनाव : एक फैसले के कई संदेश

पहली परीक्षा में सीएम तीरथ सिंह रावत हुए पास
हरदा की प्रतिष्ठा को एक बार फिर लगा धक्का
नोटा तीसरे स्थान पर
दिनेश शास्त्री
अल्मोड़ा जिले की सल्ट विधान सभा सीट पर हुए उपचुनाव ने एक साथ कई संदेश दिए हैं। सबसे बड़ा संदेश तो हमेशा अंतर्कलह से जूझती रही कांग्रेस के लिए है, जो तमाम कोशिशों के बावजूद एकजुट नहीं हो पाई। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए इस नतीजे ने पार्टी के मनोबल को कमजोर सा कर दिया है। हैरत की बात तो यह है कि 2017 के चुनाव में जहां बीजेपी प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह जीना महज 3000 मतों के अंतर से जीते थे, इस बार यह अंतर चार हजार से ऊपर हो गया है। जबकि छवि के मामले में महेश जीना कोई बड़ी सख्शियत नहीं थे। इसके विपरीत कांग्रेस की गंगा पंचोली परिचित प्रत्याशी थी वे ब्लॉक प्रमुख रह चुकी हैं और सबसे बड़ी बात कांग्रेस के बड़े नेता हरीश रावत की पसंद थे। यानी सीधे तौर पर यह चुनाव हरदा की प्रतिष्ठा का चुनाव था। गंगा तो प्रतीक थी, लेकिन सल्ट की जनता ने महेश का वरण किया। गंगा के लिए यह भविष्य की राह बंद करने जैसा दुस्वप्न जैसा ही है।
सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के बाद खाली हुए सल्ट विस क्षेत्र उपचुनाव में भाजपा के महेंद्र सिंह जीना ने कांग्रेस की गंगा पंचोली को 4700 वोट से हराया है। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव से भी कांग्रेस की गंगा पंचोली इस सीट से चुनाव हार गई थी। इस उपचुनाव में सबसे चौकाने वाली बात यह रही कि तीसरे स्थान पर लोगों ने नोटा को पसंद किया है। चुनाव मैदान में खड़े अन्य लोगों को इतने वोट नहीं मिल पाए जितने कि नोटा को। भाजपा के महेश जीना को 21,874 मत मिले, जबकि कांग्रेस की गंगा पंचोली को 17,177 वोट मिले। इस तरह बीजेपी ने यह सीट 4697 वोटों के अंतर से जीत ली, जो पिछली जीत से भी बड़ी है। खास बात यह कि इस सीट पर नोटा तीसरे स्थान पर रहा। 721 मतदाताओं ने नोटा बटन दबाया। जाहिर है भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशियों के बाद तीसरे नंबर पर नोटा ही रहा। उसके बाद निर्दलीय सुरेंद्र सिंह को 620, उपपा के जगदीश चंद्र को 493, सर्वजन स्वराज पार्टी के शिव सिंह रावत को 466, उक्रांद समर्थित पान सिंह को 346 और पीपीई डेमोक्रेटिव के नंदकिशोर को 209 वोटों से संतोष करना पड़ा। इसके अलावा 63 मत निरस्त मत हुए हैं।
देखा जाए तो इस उपचुनाव की कोई जरूरत भी नहीं थी। महेश जीना को लोगों के बीच काम करने के लिए मात्र आठ माह का वक्त मिल रहा है। अगले वर्ष जनवरी में आचार संहिता लागू हो जाएगी और मार्च तक नए चुनाव संपन्न हो जाएंगे। ऊपर से कोरोना की मार चल रही है। इस स्थिति में वे जनता के लिए उपयोगी कितना सिद्ध होंगे, समझा जा सकता है। लेकिन हरदा जैसे महारथी की तुलना में जीत दर्ज करने से महेश जीना सल्ट की राजनीति में स्थापित जरूर हो गए हैं। इस क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ता ख्यात सिंह तड़ियाल कहते हैं कि जनता ने बीजेपी को जो आशीर्वाद दिया है, उसके कई मायने हैं। सुरेंद्र सिंह जीना के प्रति यह श्रद्धांजलि तो है ही, बीजेपी के सेवाभाव पर भी जनता की मुहर है और सबसे ज्यादा नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत पर भरोसा, जो उन्होंने प्रचार के दौरान लोगों को दिया। उनके मुताबिक यह उपचुनाव सीएम तीरथ सिंह रावत की पहली परीक्षा थी और वे उसमें अच्छे अंकों के साथ पास हो गए।
दूसरी ओर देखा जाए तो कांग्रेस ने इस चुनाव में बहुत कुछ खोया है। उसने न सिर्फ जनता का भरोसा खोया, बल्कि अपने लोगों को भी खो दिया। सल्ट के स्थापित नेता रणजीत सिंह रावत अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे, पार्टी का प्रदेश नेतृत्व इसके लिए तैयार भी था लेकिन हरदा के वीटो ने उन्हें दौड़ से बाहर कर दिया, नतीजा यह हुआ कि पूरे चुनाव अभियान के दौरान रणजीत सिंह रावत कहीं नजर नहीं आए, उल्टे उन्होंने चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में हरदा को तंत्र मंत्र करने वाला नेता बता कर पार्टी की संभावनाओं को कमजोर ही किया। ये नोटा के वोट कम से कम उसी ओर इशारा कर रहे हैं।
निसंदेह भाजपा का चुनाव प्रबंधन बेहतर था। पार्टी ने न सिर्फ शिद्दत से यह चुनाव लड़ा, बल्कि संगठन की एकजुटता का प्रदर्शन भी किया। कांग्रेस अगर बीजेपी से इतना ही सीख ले तो उसकी ताकत लौट सकती है किंतु आदत से मजबूर कांग्रेसी शायद ही कभी इस दिशा में गंभीर हों। अब तो कहावत सी हो गई है कि कांग्रेस को जनता नहीं हराती, बल्कि कांग्रेसी खुद हार का कारण बनते हैं। अगर यह सच न होता तो 2017 में हरदा सीएम रहते हुए दो सीटों से नहीं हारते। यह भी इस चुनाव का बड़ा संदेश है। कांग्रेसी न समझें तो यह उनकी समस्या है।
एक बात और – पांच राज्यों में हुए चुनाव के बाद जो तस्वीर उभरी है, उसने कांग्रेस की भविष्य की तस्वीर का खाका भी खींच दिया है। अगर पार्टी के अंदर बने जी 23 समूह को संतुष्ट नहीं किया गया तो कौन गारंटी देगा कि अगले चुनाव तक कांग्रेस फिर खड़ी हो पाएगी।

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