किशोर ने आईडीपीएल के पुनर्जीवन के लिए मांगा दलों से सहयोग
देहरादून। आईडीपीएल ऋषिकेश को पुनर्जीवित करने के अभियान के दूसरे चरण में किशोर उपाध्याय ने उत्तराखंड व ऋषिकेश से जुड़ी राजनैतिक क्षेत्र की हस्तियों से भी अनुरोध किया है। उ न्होंने लिखा है कि यह सटीक समय है जब आईडीपीएल ऋषिकेश को पुनर्जीवित किया जा सकता है।उन्होंने कहा है कि अभी भी आईडीपीएल ऋषिकेश से कुछ दवाईयों का उत्पादन हो रहा है और उसको विस्तार देकर ऋषिकेश व उसके आस-पास के हजारों हाथों को काम मिल सकता है। किशोर ने लोगों को भेजे गये पत्र में आईडीपीएल का पूरा इतिहास भी लिखा है। किशोर ने कहा है कि गुजरात के सूरत में 1985 में फैले प्लेग के दौरान कोई संस्थान दवा बनाने को तैयार नहीं हुआ, ऐसी स्थिति में आईडीपीएल से बनाकर प्लेग की सारी दवाओं की आपूर्ति की गई।
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आईडीपीएल का अतीत क्या रहा
भारत और तत्कालीन सोवियत संघ के सहयोग से गरीबों को सस्ती दवाएं मुहैया कराने के मकसद से ऋषिकेश के वीरभद्र में 1962 में इंडियन ड्रग्स फार्मास्युटिकल लि़ (आईडीपीएल) फैक्ट्री का शिलान्यास किया गया था। 1967 में फैक्ट्री में उत्पादन शुरू हो गया था। शुरुआती डेढ़ दशक में यहां पैंसिलीन, स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासाइक्लीन, एंटी फंगल टैब्लेट जैसी महत्वपूर्ण दवाएं तैयार करके पूरे देश में भेजी जाती थी। 1980 के आसपास तक आईडीपीएल का बेहतर संचालन हुआ। उदारीकरण के दौर में सार्वजनिक संस्थानों से सरकारों के हाथ खींचने और प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देने का नतीजा आईडीपीएल ने भी भुगता। कर्मचारियों को जबरन रिटायरमेंट देना, छंटनी आदि के चलते मानव संसाधन तो घटा ही, एक वक्त फैक्ट्री में उत्पादन भी पूरी तरह से ठप हो गया। इसके बाद इसे बीमारू फैक्ट्री बताकर ब्यूरो आफ इंडस्ट्रीयल फाइनेंशियल रकिंस्ट्रशन (बीआईएफआर) को रेफर कर दिया। इस विशाल फैक्ट्री के करीब एक हजार क्वार्टर खाली पड़े हैं। इनमें अधिकांश देखरेख के अभाव में गिरासू हो चुके हैं। उत्पादन के लिए फैक्ट्री को नए सिरे से पुनर्स्थापित करना होगा जिसमें करोड़ों रुपये खर्च होने की आवश्यकता है।