G-KBRGW2NTQN देवस्थानम बोर्ड पर रार, बुरी फंसी सरकार – Devbhoomi Samvad

देवस्थानम बोर्ड पर रार, बुरी फंसी सरकार

दिनेश शास्त्री*
देहरादून देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का मामला उत्तराखंड में विमर्श का न सिर्फ बड़ा मुद्दा बन गया है बल्कि राज्य की भाजपा सरकार के लिए परेशान करने वाला विषय भी बन गया है। प्रदेश के चारों धामों के तीर्थ पुरोहित आंदोलित हैं तो विपक्षी कांग्रेस आग में घी डाल रही है। इसके चलते अगले चुनाव में यह मामला कम से कम चार विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक भी हो सकता है। रार इस कदर बढ़ गई है कि सरकार के लिए मुसीबत कम होने के बजाय लगातार बढ़ती जा रही है।
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में पारित एक एक्ट के जरिए प्रदेश के चारों धामों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ व बद्रीनाथ तथा इनसे जुड़े 51 मंदिरों का प्रबंधन सरकार के हाथ में आ गया। एक्ट इस कदर आनन फानन में आया कि हितधारकों को भरोसे में लेने की जरूरत भी नहीं समझी गई। तीर्थ पुरोहित भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी के जरिए मामले को हाई कोर्ट ले गए। हाई कोर्ट से मामला खारिज हुआ तो त्रिवेंद्र सरकार को लगा कि उसने बाजी मार ली है लेकिन बात अभी भी खत्म नहीं हुई और कोर्ट कचहरी के साथ साथ समानांतर रूप से आंदोलन अनवरत जारी है। विरोध के स्वर अगर कहीं धीमे हैं तो वह सिर्फ यमुनोत्री में देख सकते हैं, बाकी गंगोत्री, केदारनाथ तथा बद्रीनाथ में तीर्थ पुरोहित आर पार की लड़ाई के मूड में नजर आ रहे हैं।
आपको याद होगा जब हरिद्वार में अखाड़ों और विश्व हिंदू परिषद की मांग पर सीएम तीरथ सिंह रावत ने देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार की बात कही थी। तब से तीर्थ पुरोहितों की उम्मीदें भी बढ़ गई लेकिन इस बीच धर्मस्व मंत्री ने देवस्थानम बोर्ड की गतिविधियां तीव्र कर दी। अफसरशाही ने भी नहीं चाहती कि इस मामले का समाधान निकले। यह इस बात से समझा जा सकता है कि सीएम की घोषणा एक तरह से शासनादेश होता है। सीएम जब पुनर्विचार की घोषणा कर चुके हों तो अफसरशाही को उस पर अमल करना चाहिए था लेकिन अफसरशाही ने इस बीच कुछ नए सदस्य देवस्थानम बोर्ड में नामित कर दिए तो मामले ने फिर तूल पकड़ दिया और अब यह मामला सरकार के हाथ से निकलता नजर आ रहा है।
वैसे धर्मस्व विभाग ने मामले को शॉर्ट आउट करने के लिए बोर्ड में कुछ दानदाताओं के साथ श्रीनिवास पोस्ती और आशुतोष डिमरी को सदस्य नामित कर क्राइसिस मैनेजमेंट की कोशिश तो की लेकिन इसने भी आग में घी का ही काम किया। तीर्थ पुरोहित इसे सरकार की फूट डालो और राज करो नीति का हिस्सा मान रहे हैं।
इस बीच कांग्रेस ने भी मुद्दे को लपक लिया है। वैसे पहले दिन से ही कांग्रेस देवस्थानम बोर्ड के विरोध में है। उसके राजनीतिक कारण भी हो सकते है लेकिन अब जबकि विधानसभा चुनाव करीब हैं तो इस बहाने कम से कम चार सीटों पर कांग्रेस बढ़त लेने के लिए मुद्दे को हवा दे रही है। प्रीतम सिंह से लेकर मंत्री प्रसाद नैथानी तक वादा कर चुके हैं कि 2022 में कांग्रेस की सरकार आने पर देवस्थानम बोर्ड को भंग कर दिया जाएगा। चार धामों की चार विधानसभा सीटें उसे नजर आ रही हैं।
देवस्थानम बर्ड की स्थापना के पीछे सरकार की सद इच्छा जो भी रही हो, लेकिन जल्दबाजी ने उसे नुकसान हो पहुंचाया है। इस मुसीबत से तीरथ सरकार कैसे पार पाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा।
एक और बात – गंगोत्री सीट के साथ एक मिथक भी जुड़ा है, इस सीट पर जिस पार्टी की जीत होती है, उसकी सरकार प्रदेश में बनती रही है। सीएम तीरथ सिंह रावत को आगामी 10 सितम्बर तक विधानसभा चुनाव जीत कर आना है। फिलहाल गंगोत्री सीट ही गोपालसिंह रावत के निधन से खाली हुई है। यदि वे वहां से चुनाव लड़ते हैं तो देवस्थानम बोर्ड भंग करना लाजमी होगा। इस लिहाज से मामला दिलचस्प भी है। वैसे यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है। असली फैसला तो वहां से आना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *