G-KBRGW2NTQN त्वरित टिप्पणी  *बड़ा हादसा* – Devbhoomi Samvad

त्वरित टिप्पणी  *बड़ा हादसा*

*सत्ता की मदहोशी में डबल इंजन की सरकार खाई में गिरी* 
भारती पांडे 
अल्मोड़ा 
21 वर्ष के उत्तराखंड में मुख्यमंत्री आते जाते रहे हैं। भाजपा ने उत्तराखंड को कई मुख्यमंत्री दिए। अभी की स्थिति देखने पर लग रहा है कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बनाने के रिकॉर्ड को भाजपा शीर्ष पर पहुंचाना चाह रही है भले ही राज्य की आर्थिक स्थिति सही नहीं है पर राज्य मंत्रियों व पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली पेंशन के बोझ तले दबता जा रहा है। क्योंकि भारत में मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और पूंजीपति वर्ग ही ऐसे वर्ग हैं जिनकी व्यवस्थाओं का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है और ये सब आम जनता जो अभी महामारी, बेरोज़गारी का संकट झेल रही है, के टैक्स से ही वहन किया जाता है।
2017 में बहुमत के साथ सत्ता में अाई भाजपा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद का कार्यभार सौंपा था। परन्तु फरवरी 2021 में ज़ीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली त्रिवेंद्र सरकार को भ्रष्टाचार व पार्टी में व्याप्त असंतोष के चलते मुख्यमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। त्रिवेंद्र रावत के इस्तीफे के बाद मीडिया में नए मुख्यमंत्री पद को लेकर कई चेहरों पर चर्चा हुई। परन्तु भाजपा ने निर्णय किया कि वो एक गुटबाज़ी से अलग चेहरा मुख्यमंत्री के रूप में लेकर आएगी और सबकी कल्पना से अलग तीरथ सिंह रावत ने मार्च 2021 के प्रथम सप्ताह में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मुख्यमंत्री पद का कार्यभार ग्रहण करते ही नवनियुक्त मुख्यमंत्री ने तमाम विवादित बयान दे डाले। जिस कारण पूरे देश में राज्य कि किरकिरी हुई। हालांकि अपने हर विवादित बयान के बाद तीरथ सिंह रावत माफी मांगते हुए भी नज़र आए।
उत्तराखंड राज्य में 2022 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं ऐसे में भी 2017 में अाई भाजपा की सरकार ने पहले दूसरा और अब तीसरा मुख्यमंत्री बदल दिया है। तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाने के पीछे संवैधानिक कारण दिए जा रहे हैं। तीरथ सिंह रावत संसदीय क्षेत्र पौड़ी गढ़वाल से सांसद हैं। परन्तु उत्तराखंड में विधानसभा तो है परन्तु विधान परिषद नहीं है और मुख्यमंत्री होने के लिए अनिवार्य शर्त है कि उम्मीदवार को मुख्यमंत्री बनने से पूर्व या फिर मुख्यमंत्री बनने के 6 माह के अंदर किसी एक सीट से विधायक बनना पड़ता है। परन्तु तीरथ सिंह रावत किसी भी सीट से विधायक नहीं बन पाए। उत्तराखंड में अप्रैल के महीने में सल्ट विधानसभा में उप चुनाव कराए गए थे पर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत राज्य के मुख्यमंत्री होने के बावजूद उस चुनाव को लड़ने का साहस नहीं कर पाए। लेकिन अब विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन ना कर पाने का भय कहें या कुछ और पर तीरथ सिंह रावत ने ये चुनाव नहीं लड़ा। सल्ट विधानसभा में भाजपा के प्रत्याशी की जीत हुई थी। वर्तमान में श्रीमती इंदिरा हृदयेश की मृत्यु के बाद उनकी विधानसभा सीट रिक्त है परन्तु उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव 2022 में होने वाले हैं तो ऐसे में जब ज़्यादा समय नहीं है तब उपचुनाव नहीं कराए जाने की आशंका है। अतः तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए विधानसभा के सदस्य नहीं बन पाए और उन्हें हाईकमान के आदेश पर पद से इस्तीफा देना पड़ा।
बीते दिनों भाजपा की उत्तराखंड शाखा में तमाम घटनाएं घटित हुई। त्रिवेंद्र रावत का इस्तीफा और उन्हीं के साथ प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत का पद से इस्तीफा व उनका राज्य सरकार में मंत्री बनना, तीरथ सिंह रावत का मुख्यमंत्री बनना और मदन कौशिक का प्रदेश अध्यक्ष बनना, सल्ट विधानसभा चुनाव और उसके बाद कुंभ मेले के कोविड जांच घोटाले को मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत व पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के बीच बहस छिड़ना। पार्टी के अंदर छिड़ी इस बहस के बाद निश्चित है कि पार्टी में अराजकता उत्पन्न हुई।
और अब जब 2022 दूर नहीं है ऐसे में उत्तराखंड में कुमाऊं मंडल से पुष्कर सिंह धामी को नए मुख्यमंत्री को नियुक्त किया है जो खटीमा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। लगातार मुख्यमंत्री बदलने, विवादित बयानों और 2022 के निकट होने के कारण नए मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारियां काफी बढ़ जाएंगी। क्योंकि भाजपा की लगातार मुख्यमंत्री बदलने की नीति रुझान आने शुरू हो गए हैं। विपक्षी नेताओं का कहना है कि चेहरा बदलने मात्र से भाजपा की छवि नहीं बदलने वाली है।
अपने सिर्फ 21 वर्षों में उत्तराखंड राज्य में ये 11वें मुख्यमंत्री बन चुके हैं और भारत में भले ही कुछ हो जाए, आपदा आए या बेरोज़गारी बढ़े पर फिर भी मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों को कार्यकाल समाप्त होने के बाद पूर्व मंत्री के दर्जे के साथ पेंशन प्रदान की जाती है ऐसे में उत्तराखंड जैसे राज्य जहां लगातार युवा बेरोज़गारी का दंश झेल रहे हैं, वहां 5 वर्ष के अंदर ही तीन मुख्यमंत्री बदलने पर पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली पेंशन के नाम पर आर्थिक संकट झेलना होगा और निश्चित है इस महंगाई के दौर में यह आम जनता की जेबों पर चोट तो करेगा ही।

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