तो धामी जाएंगे मनहूस बंगले में अंधविास को तोड़ेंगे
देहरादून। तो नवनियुक्त मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी त्रिवेंद्र सिंह रावत की तरह मनहूस बंगले के अंधविास को तोड़ने का जज्बा दिखाएंगे। माना जा रहा है कि वह इस बंगले में जाएंगे। असल में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के करीब-करीब चार साल के निष्कंटक राज में एक अच्छी चीज हुई थी । लगता था कि उन्होंने यह सियासी अंधविास तोड़ दिया है कि मुख्यमंत्री आवास में जो भी मुख्यमंत्री अपना बसेरा बनाता है वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है। वजह है कि इस कथित अभिशप्त बंगले को अपना आशियाना बनाने वाले चार मुख्यमंत्रियों को वक्त से पहले ही गद्दी छोड़ने को मजबूर होना पड़ा है ऐसे में हर कमजोर इंसान की तरह सियासतदां कुर्सी जाने के लिए अपनी गलतियों और कमजोरियों को दोष नहीं देते बल्कि इस बेचारे बेजबान बंगले पर मढ़ देते हैं। उनके बाद अचानक बने सीएम तीरथ सिंह रावत ने तो त्रिवेंद्र रावत का हश्र देखने के बाद हरीश रावत की तरह सेफ हाउस और अपने निजी आवास से सत्ता चलाने का फैसला किया मगर सेफ हाउस भी सेफ नहीं निकला और उनकी चार महीने में ही विदाई हो गई।
बता दें कि स्व़ एनडी तिवारी के कार्यकाल में मुख्यमंत्री के रहने के लिए देहरादून के गढ़ी कैंट क्षेत्र में पहाड़ी शैली के इस आलीशान बंगले के निर्माण हुआ था। 2007 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और भाजपा ने सरकार बनाई। इस सरकार मुखिया बीसी खंडूड़ी ने इस नए बंगले को अपना आशियाना बनाया। लेकिन ढाई साल के अंदर ही उन्हें सीएम की गद्दी छोड़नी पड़ी। इसके बाद रमेश पोखरियाल निशंक सीएम बने और इसी बंगले में रहने लगे। लेकिन वे भी अपना कार्यकालपूरा करने से पहले कुर्सी से रुखसत हो गए
2012 में कांग्रेस फिर सत्ता में आई और विजय बहुगुणा सीएम बने। उस समय तक इस आलीशान बंगले की चर्चा मनहूस बंगले के रूप में होने लगी थी। अब अपने बेफिक्री अंदाज वाले विजय बहुगुणा ने इसी बंगले में रहना शुरु कर दिया। बंगले की मनहूसियत ने बहुगुणा को भी पूर्व सीएम बना दिया। इसके बाद सीएम बने हरीश रावत। हरदा पहले ही तंत्र मंत्र में भरोसा करते रहे हैं। डर के मारे उन्होंने बंगले की तरफ झांका भी नहीं और बीजापुर गेस्ट हाउस के एक हिस्से को अपना आशियाना बनाए रखा। लेकिन फिर भी उनकी कुर्सी नहीं बची यही नहीं वे दो विधानसभा क्षेत्रो से चुनाव भी हार गए। 2017 में भाजपा की सरकार के मुखिया बने त्रिवेंद्र सिंह रावत। उस समय भी सवाल उठा कि क्या त्रिवेंद्र इस बंगले में रहेंगे। लेकिन त्रिवेंद्र ने इसी बंगले को आशियाना बनाया। तमाम पूजा की गई और वास्तुदोष दूर करने के लिए गो माता को रखा गया। वक्त गुजरने के साथ ही यह लग रहा था कि शायद इस बंगले का अभिशाप खत्म हो गया है। लेकिन आखिरकार त्रिवेंद्र को भी वक्त से पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री बनना पड़ गया।