G-KBRGW2NTQN बेमौसमी खेती से गिर रहा भूजल का स्तर – Devbhoomi Samvad

बेमौसमी खेती से गिर रहा भूजल का स्तर

रुद्रपुर। गर्मी बढ़ने के साथ ही पहाड़ों पर पानी का संकट  गहराने लगा है। वहीं तराई में पानी की उपलब्धता का फायदा बेमौसमी धान की खेती  कर उठाया जा रहा है। इस खेती से भले ही किसानों को मुनाफा हो रहा है, लेकिन इससे भूजल का स्तर गिरता जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि किसानों को बेमौसमी धान की खेती नहीं करने की सलाह देने वाले पंतनगर यूनिवर्सिटी के अलावा सरकारी विभागों की जमीनों पर बेमौसमी धान लहलहा रहे हैं।
बिहार, पश्चिम बंगाल सहित अन्य पूर्वी राज्यों की तर्ज पर तराई में बड़े पैमाने पर बेमौसमी धान की खेती की जा रही है। इस खेती में करीब डेढ़ से दो गुना उत्पादन होता है, लेकिन मुनाफे का सौदा बनी बेमौसमी धान की खेती से भूजल का बड़े पैमाने पर दोहन किया जा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस खेती में बड़ी मात्रा में कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है, जिसका असर न केवल लोगों की सेहत पर पड़ता है। वहीं मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कमजोर हो रही है।
तराई में करीब 45 हजार हेक्टेयर में बेमौसमी धान की खेती की जा रही है, लेकिन लगातार गिरते भूजल स्तर को देखते हुए 2 साल पहले कृषि विभाग ने इस खेती को बैन करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा था, जिसपर अब तक कोई फैसला नहीं हो सका है। पंतनगर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक लगातार किसानों को बेमौसमी धान की खेती नहीं करने की राय देते आए हैं, लेकिन यूनिवर्सिटी के खेतों में बेमौसमी धान की खेती हो रही है। इतना ही नहीं पुलिस लाइन में भी बेमौसमी धान उगाया जा रहा है। एक तरफ गेहूं की फसल पककर तैयार है और दूसरी जगह धान की फसल लगाई जा रही है। जिला प्रशासन ने 3 साल पहले किसानों के सामने मक्के की खेती को बेमौसमी धान की खेती के विकल्प के रूप में रखा था और मक्के की खरीद के लिए जिले की कंपनियों को भी राजी किया था। हालांकि किसानों का कहना है कि कंपनियों ने मक्के का सही दाम नहीं दिया। अगर सरकार मक्के के सही दाम दिलाने की गारंटी देती है, तो किसान बेमौसमी धाम की खेती छोड़कर मक्के की खेती करेंगे।

गिरते भूजल के लिए अकेले किसानों को ही जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है। उत्तराखंड के प्रमुख कृषि उत्पादक जिले उधमसिंहनगर में बेमौसमी धान की खेती से नकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। पांच सालों में भूजल का स्तर 70 फीट नीचे चला गया है और जिले को सेमी क्रिटिकल जोन में शामिल किया गया है। अगर समय रहते इस खेती को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में तराई में जल संकट के हालात पैदा हो सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *