G-KBRGW2NTQN पहाड़ी संस्कृति के वनफूलों का संरक्षण संवर्धन हो: राष्ट्रपति – Devbhoomi Samvad

पहाड़ी संस्कृति के वनफूलों का संरक्षण संवर्धन हो: राष्ट्रपति

उत्तराखंड में नेचर व एडवेंचर व मेडिकल टूरिज्म की अपार संभावनाएं
देहरादून। राष्ट्रपति द्रौपदी मुमरू ने कहा कि भारत के सभी राज्यों की संस्कृति का संरक्षण और विकास किया जाना चाहिए। पहाड़ों में रहने वाले निवासी अपनी संस्कृति से वन के फूल जैसे आनंदित करते हैं, उन्हें संरक्षित करना आवश्यक है। राष्ट्रपति ने प्रशिक्षित कलाकारों की बजाय उत्तराखंड की संस्कृति से स्वत: उपजने वाले असली कलाकारों को प्रोत्साहन देने पर जोर दिया।
राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार उत्तराखंड आई राष्ट्रपति द्रौपदी मुमरू  ने मुख्यमंत्री आवास में आयोजित नागरिक अभिनंदन-समारोह कहा -‘‘देव-भूमि, तपोभूमि और वीर-भूमि उत्तराखंड में आना, मैं अपना सौभाग्य मानती हूं। हिमालय को महाकवि कालिदास ने ‘देवात्मा’ कहा है। राष्ट्रपति के रूप में, हिमालय के आंगन, उत्तराखंड में, आप सब के अतिथि-सत्कार का उपहार प्राप्त करके, मैं स्वयं को कृतार्थ मानती हूं।’’
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी परंपरा में नगाधिराज हिमालय के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को देवताओं का वंशज माना गया है। इस प्रकार उत्तराखंड के भाई-बहन एक दिव्य परंपरा के वाहक हैं। उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता और यहां के लोगों के प्रेमपूर्ण व्यवहार ने स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी से लेकर प्रति के सुकुमार कवि, सुमित्रानंदन पंत को मंत्रमुग्ध किया था। इस प्राकृतिक सुंदरता को बचाते हुए ही विकास के मार्ग पर हमें आगे बढ़ना है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत माता की धरती के बहुत बड़े भाग को निर्मित और सिंचित करने वाली नदी-माताओं के स्रेत उत्तराखंड में हैं। लोक-मान्यता है कि लक्ष्मण जी के उपचार के लिए इसी क्षेत्र के द्रोण-पर्वत को ‘संजीवनी बूटी’ सहित हनुमान जी ले कर गए थे। इस तरह आध्यात्मिक शांति और शारीरिक उपचार दोनों ही दृष्टियों से उत्तराखंड कल्याण का स्रेत रहा है। उत्तराखंड में नेचर टूरिज्म और एडवेंचर टूरिज्म के साथ-साथ मेडिकल टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं। इससे युवाओं में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
उत्तराखंड के वीर सपूतों को किया याद
राष्ट्रपति ने कहा कि उत्तराखंड के शूरवीर लोग भारत माता के प्रहरी भी रहे हैं। हमारे वर्तमान सीडीएस जनरल अनिल चौहान उत्तराखंड के ही सपूत हैं। भारत के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत भी इसी धरती की विभूति थे। 1990 के दशक में जनरल बिपिन चंद्र जोशी ने चीफ अफ आर्मी स्टाफ के रूप में भारत माता की सेवा की थी। कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा करने वाले मेजर राजेश सिंह अधिकारी व मेजर विवेक गुप्ता का बलिदान सभी देशवासी हमेशा याद रखेंगे। 1962 के युद्ध में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले महावीर चक्र से सम्मानित जसवंत सिंह रावत एक अमर सेनानी के रूप में भारतवासियों को हमेशा याद रहेंगे। स्वाधीनता के तुरंत बाद कश्मीर में घुसपैठियों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले सैनिक दीवान सिंह को तज्ञ राष्ट्र ने महावीर चक्र से सम्मानित किया था।

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