हरिद्वार। आयुव्रेद प्रसिद्ध औषधि जिसे गिलों या अमृता भी कहा जाता है। जिस जड़ी बूटी ने कोरोना जैसी महामारी में लाखों जीवन की रक्षा की उस गिलोय टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया को लेकर भ्रम फैलाने वालों के लिए अब चिन्ता के साथ चिन्तन का समय आ गया है।
यूरोप का वि प्रसिद्ध रिसर्च जर्नल-फ्रंटियर्स इन फार्मालोजी ने स्वीकार किया कि गिलोय शरीर के किसी भी अंग के लिए, किसी भी तरह से हानि नहीं पहुंचाता। पतंजलि अनुसंधान संस्थान द्वारा वि में प्रथम बार गिलोय से लेकर वृहद एवं विस्तृत अनुसंधान किया गया है। जिसमें 70 से ज्यादा नर व मादा चूहों को, 28 दिन तक, सामान्य निर्धारित मात्रा से 5 गुणा तक गिलोय का सेवन कराया गया। उसके उपरान्त शरीर में स्थित 40 से ज्यादा अंगों पर गिलोय के प्रभाव को देखा गया। प्रत्येक अंग पर गिलोय के सेवन से शरीर में किसी भी तरह का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पाया गया।
इतना ही नहीं, इन सभी चूहों का लिवर, किडनी, थायरायड, हृदय, लिपिड आदि अनेक अंगों से सम्बन्धित बायोकेमिकल प्रोफाइल का भी परीक्षण किया गया। उसमें भी किसी तरह का कोई हानिकारक परिवर्तन (एडवर्स इफेक्ट) नहीं पाया गया। यह सम्पूर्ण परीक्षण चिकित्सा जगत के उच्च गुणवत्तायुक्त तरीके से जीएलपी गाइॅ लाइन के अनुसार किया गया। पंतजलि से सम्पूर्ण आयुव्रेद जगत ही नहीं भारतीय संस्कृति व परम्परा गौरान्वित है। गिलोय सच में अमृत है और इसका समुचित सेवन करें व लम्बे समय तक स्वस्थ रहें।