G-KBRGW2NTQN सेल्फी विद स्कूल यानी ,भाजपा पर चोट, – Devbhoomi Samvad

सेल्फी विद स्कूल यानी ,भाजपा पर चोट,

  • दिनेश शास्त्री

उत्तराखंड में सत्तारूढ़ भाजपा की राह दिल्ली के तख्त पर आरूढ़ आम आदमी पार्टी कठिन करने की भरसक कोशिश में जुट गई है। सेल्फी विद स्कूल अभियान से वह भाजपा की राह दुरूह करने की फिराक में है। उत्तराखंड के राजनीतिक गलियारों में अब यह सवाल तैर रहा है कि क्या आम आदमी पार्टी भाजपा को डेट मारने आई है या कांग्रेस को निपटने? वैसे उत्तराखंड
विधानसभा के चुनाव होने में अभी पूरा एक वर्ष का समय बचा है और गंगा- यमुना में तब तक बहुत सारा पानी बहना है । इसके बावजूद राजनीति की लहरें अभी से हिलोरें मारुति नजर आ रही है।
प्रदेश मे आम आदमी पार्टी ने अपनी पैठ बनाने के लिए दिल्ली मॉडल का लोक लुभावन नारा दिया है। उसके द्वारा फ्री बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य का जो खाका खींचा जा रहा है, सेल्फी विद स्कूल अभियान से प्रदेश के सरकारी स्कूलों को व्यवस्था को निशाने पर लिया जा रहा है। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया त्रिवेंद्र सरकार को बहस की चुनौती दे चुके है। इस आक्रामक रणनीति ने भारतीय जनता पार्टी की चिंता बढ़ा दी है, लेकिन भाजपा से ज्यादा भयभीत कांग्रेस है। जाहिर है राज्य सरकार से नाराजगी का जो लाभ चुनाव मे कांग्रेस को स्वाभाविक रूप से मिलना था, उसका बड़ा हिस्सा अब आम आदमी पार्टी झटक सकती है।
दीवार पर यह इबारत साफ पढ़ी जा रही है कि राज्य सरकार के कामकाज से नाराज लोग कांग्रेस के बजाय आम आदमी पार्टी को मजबूत कर सकते है। जाहिर है वोटों का यह बंटवारा अंततः कांग्रेस को नुक़सान पहुंचा सकता है। इधर कांग्रेस ने अपना जनाधार बढ़ाने के लिए सरकार को घेरने के तमाम उपक्रम किए है। पिछले दिनों हुए विधानसभा सत्र में कांग्रेस अपने तेवर दिखा भी चुकी है। सड़क से लेकर सदन तक कांग्रेस ने अपनी ताकत दिखाने की भरसक कोशिश की। कई मंचों पर पार्टी में एकजुटता प्रदर्शित करने की कोशिश भी हुई। यह अलग बात है कि एकजुटता और कांग्रेस दोनों परस्पर विरोधी शब्द सिद्ध होते रहे हैं। यह उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है।
अभी तक की स्थिति यह है कि भाजपा फिलहाल निश्चिंत है कि उसके पास अपना ठोस जनाधार है और आम आदमी पार्टी उसको बड़ा डेट नहीं मार पाएगी। इसके विपरीत कांग्रेस के अपने जनाधार के अलावा जो सत्ता विरोधी रुझान मिलने की उम्मीद थी, वह आम आदमी पार्टी छीन सकती है। हालांकि पूरे एक वर्ष के दौरान अभी कई नए समीकरण बनेंगे । दलबदल की नई घटनाएं सामने आएंगी और नेताओं के चाल -चरित्र और चेहरे का रंग – रूप भी सामने आना है लेकिन अभी तक का जो परिदृश्य है, उसमें कांग्रेस का पलड़ा अपेक्षित रूप से भारी नजर नहीं आ रहा है।
इसके इतर प्रदेश में उत्तराखंड क्रांति दल, सपा -बसपा जैसे क्षेत्रीय दल भी सक्रिय हैं और सभी अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील भी हैं । यह निर्विवाद है कि पृथक राज्य की अवधारणा को उत्तराखंड क्रांति दल के संघर्ष ने ही साकार किया लेकिन आज वह महज नीव का पत्थर बनकर रह गया है, जिसके अस्तित्व का एहसास तो सभी को है, लेकिन वह प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर नहीं होता । उत्तराखंड क्रांति दल की वर्तमान में यही स्थिति है। सपा – बसपा हरिद्वार और तराई में बेशक सक्रिय हैं लेकिन अभी तक निर्णायक स्थिति में नहीं है। ले – देकर प्रदेश की तीसरी ताकत बनने का खम आम आदमी पार्टी ठोक रही है। उसे इस कोशिश में कितनी सफलता मिलेगी, यह तो समय बताएगा लेकिन हाथ- पैर मारने में उसके अंदाज़ ने कांग्रेस की चिंता जरूर बढ़ा दी है।
इस बीच कोरोनावायरस का खौफ कम होते ही प्रदेश की राजनीति में गर्माहट आने लगी है। देखना यह होगा कि इस साल के उत्तरार्ध में क्या परिदृश्य उभरकर सामने आता है ‌। यह तो तय है कि प्रचार तंत्र में कांग्रेस और भाजपा से आम आदमी पार्टी कहीं आगे है। दिल्ली के विधान सभा चुनाव में वह इस बात को सिद्ध भी कर चुकी है। जो भी हो, इतना निश्चित है कि भावी परिदृश्य रोचक होने जा रहा है।

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