युवा पीढ़ी को अंधकार की ओर ले जाता सर्वनाशी तूफान
आज का कड़वा सत्य है कि युवाओं का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिनकी सोच, संस्कृति, जीवनशैली एवं मनोरंजन के सारे साधन बदल गए हैं। अत्याधुनिक कहे जाने वाले युवा के भटकाव के कई नये द्वार खुल गए हैं। उन्हें प्रभावित करने वाली चीजों में से मुख्य हैं- इंटरनेट, अश्लील एवं फूहड़ फिल्में, पब संस्कृति, ड्रग्स, फैशन, महंगे मोबाइल, जिनमें एसएमएस एवं एमएमएस करना, महंगी गाड़ियां एवं इन सबके लिए मोटी रकम।
ये चीजें ऐसी हैं जो युवाओं में रचनात्मक एवं सृजनात्मक सोच के बजाय घातक सोच को अंजाम दे रही हैं परंतु हमारे युवा इस घातक सोच को ही आधुनिक युग की प्रतिष्ठा एवं सम्मान का स्वरूप देने में जुट गए हैं। एक अध्ययन से सामने आया कि चरित्राहीनता के कई नये सूत्रा रचे जा रहे हैं जो एक अलग प्रकार की शब्दावली के साथ बहुत तेजी से हमारे भविष्य की पीढ़ी को खोखला कर रहे हंै। यदि हम इस ओर से आँंखें मूंदते हैं तो इसका अर्थ होगा कि हम भी इस संकट को हल्के से ले रहे हैं। इस तथ्य से कौन इंकार करेगा कि इंटरनेट का मायाजाल आज का सर्वाधिक आकर्षित करने वाला एक सशक्त माध्यम है। इंटरनेट सूचना एवं ज्ञानवर्द्धक सामग्री का माध्यम है तो नैतिक पतन का मार्ग भी बन सामने आ रहा हैं। कामुकता से जुड़ी कई साइट्स और ग्रुप हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों जैसे आई.आई.टी., मेडिकल एवं आई.आई.एम. के बहुसंख्यक युवाओं के लिए सेक्स एक सामान्य बात है। वे युवा, जो इससे दूर रहते हैं, उन्हें विशिष्ट विशेषणों से नवाजा जाता है। फैशनपरस्ती और ड्रग्स जीवन का आधार बन रहे हैं।
महंगे उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने का तात्पर्य है चरित्रा, शील एवं सभी मर्यादाओं को ताक पर रख देना। युवाओं के एक वर्ग ने अश्लीलता की इतनी हदें पार कर ली हैं कि न तो उनके जीवन की धड़कन ही सही ढंग से धड़क पा रही है और न वे स्वयं अपने जर्जर शरीर को लड़खड़ाते कदमों से झेल पा रहे हैं। अश्लीलता की आग में झुलस रहे युवाओं को ड्रग्स एवं नशा खूब जला रहे हैं। उन्हें भ्रम है कि इससे उनकी क्षमता बढ़ती है। पार्टियों व ड्रग्स का खूब प्रचलन बढ़ रहा है।
भारत में 85 प्रतिशत ड्रग्स लेने वाले शिक्षित वर्ग से हैं। 61 प्रतिशत ड्रगखोर दक्षिण भारत के हैं, 61 प्रतिशत कामकाजी पेशेवर हैं तथा 54 प्रतिशत लोग जिनमें अधिकतर युवा हैं, इसे सेक्स के साथ जोड़ते हैं। वर्तमान समय के इन नए सिंथेटिक ड्रग्स के बारे में देखें तो केटामाइन चेतना लुप्त करने वाली दवा है जिसे ‘डेट रेप’ ड्रग्स भी कहते हैं। यह नींद की दवा वेलियम से दस से बीस गुना प्रभावशाली है। कई बार इन औषधियों को कामुकता बढ़ाने के लिए लिया जाता हैं। इसना असर खत्म होते ही भारी झटका लग सकता है, अधिक सेवन से मौत भी हो सकती है। आइस, जिसे क्रैंक, गलास या क्रिस्टल मेथ के नाम से जाना जाता है, यह भारी नशा देता है तथा हिंसक बना देता है। आज के युवा गांजा, भांग, अफीम को छोड़कर इन सिंथेटिक नशाओं के दीवाने बनते जा रहे हैं।
आज की पार्टियों का स्वरूप बदल गया है। मदमस्त करने वाली लाइट, धुआं, ड्राइ आइस फाग ओर कान फोड़ने वाले टेक्नो संगीत की धुन पर नाचते सैंकड़ों युवक किसी डान्स पार्टी में नहीं बल्कि आधुनिक रेव पार्टी में होते हैं। इस पार्टी में शराब नहीं बंटती परंतु इससे स्थान पर ऐसी चीजें बंटती हैं जिन्हें दूसरे नाम दिए गए हैं पर ये सभी तरह-तरह के नशे हैं। इन सभी को आज कोकीन और अफीम के उत्पादों से भी अधिक इस्तेमाल किया जाता है। इन दिनों बरसों पुराना हुक्का आधुनिक रूप धरकर सामने आया है। बड़े-बड़े शाॅपिंग माल्स के अलावा अलग से ऐसे रेस्टोरेंट खुल गए हैं जो सरेआम धुएं में दहकने युवाओं को विशेष स्थान मुहैया करा रहे हैं। लड़कियां भी बड़ी संख्या में इसकी शिकार हो रही हैं।
जीवन में यौवन एक ऊर्जा का आगार है। इस ऊर्जा को नशा, वासना एवं तथाकथित आधुनिक खुली संस्कृति में बचाना होगा। युवा ऊर्जा एवं शक्ति के प्रतीक हैं उन्हें इनका उपयोग मनमाने ढंग से करने की छूट नहीं दी सकती है। इसका नियोजन सदैव रचनात्मकता में, सृजनात्मकता में, पीड़ित मानवता की सेवा में व गरीबी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद आदि के खिलाफ करना चाहिए।
आज जिस तेजी से यौन उपराधों की संख्या में तेजी आई है, लूटपाट जैसे अपराध बढ़ रहे हैं और हम कायर बने तमाशा देख रहे हैं क्योंकि हमारे युवाओं में न साहस है, न ही संघर्ष करने का जज्बा। इन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है। केवल स्वयं में मस्त, मनमानी इनकी नियति बन गई है। इन्हें परिवार, समाज और राष्ट्र से विशेष लगाव नहीं है।
सकारात्मक सोच से विमुख युवा यदि एकजुट होकर समाज के इन अपराधी आॅक्टोपस को मिटाने के लिए आमादा हो जाएं तो फिर समाज और राष्ट्र को बदलते देर नहीं लगेगी। गंदगी हो या सामाजिक कुरीतियां, आर्थिक चुनौतियां हो या वैश्विक समस्याएं, कोई भी चुनौती हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती बशर्ते हम अपने भविष्य को आसुरी शक्तियों के हाथों के खिलौने बनने से बचाने के लिए सक्रिय हो जाएं। वैसे यह संतोष की बात है कि पांच नदियों की धरती पंजाब में नशे के छठे दरिया के विरूद्ध जनाक्रोश ने सारे देश में बह रही राजनैतिक क्रांति की हवा के विरूद्ध नशे के विरूद्ध अपना मत दिया।
यदि स्वयं और इस राष्ट्र को बचाना है तो हमें अपनी युवा शक्ति को गंदगी से बचाने के लिए कमर कसनी होगी। हमें यह दोष स्वीकार करना होगा कि उचित निगरानी व श्रेष्ठ संस्कार न दे पाने के लिए हम जिम्मेवार हैं। लालकिले से प्रधानमंत्राीजी ने ठीक ही कहा- ‘हम बेटी से तो पूछते हैं कि वह कहां जा रही है और कब लौटेगी। बेटों से भी पूछिए। बलात्कारी भी तो किसी के बेटे हंै।’