G-KBRGW2NTQN दिददा कैन नि पछाणि – Devbhoomi Samvad

दिददा कैन नि पछाणि

न द्दिद.गौं बडुन पछाणी, न मोहला वलुन पछाणी
कबार आयी कबार गै, कैन नि जाणी।।
नौकरी पर भी खाली साबन पछाणी
घर भी आई ह्वलू दिददा , छवट्ट नौनुन कैन नि जाणि।।
कबार आयी कबार गै, मै कैन नि पछाणी
रिश्तदारून भी कैन पछाणि, कैन नि पछणी।।
परिवार रजिस्टरन भी नि पछाणी, समाज मां भी यन क्वे काम नि ह्वे
रै जन्दु दिदौं नौं समाजै सेवा नि ह्वे
समाजन स्वे पछाणि जैन समाज पछाणि, कबार आयि कबार गै
द्दिा कैन नि पछाणी मायं मोह मां आसक्त ह्वे।
तयी मां सुख कु अनुभव रे कनूं दि-दा
समाज मैं कैन नि पछाणि दि-दा
न एैच वकन ना भ्वां वकुन पछाणि, समाज न स्वे पछाणि
 जैन समाज पछाणि, दिद्दा कैन नि पछाणि
न गौं वकुन न मोहल्ला वकुन पछाणि।।
सुभाष चंद्र भट्ट

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